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के कण्ठ में मोती की माला न होवे । हीरे का हार तो राजा के गले में ही फबेगा।'
राजा ने मोदी की स्त्री को लालायित करने के पेंतरे प्रारंभ कर दिये। अपने खास दास-दासियों द्वारा कीमति वस्तु निर्मला को वह उपहार रूप भेजने लगा। शाणी निर्मला राजा की बूरी भावना पहचान गई। ऐसे हृदयहीन राजवी की मेहरबानी भी अग्नि की ज्वाला के साथ खेलने समान है, वह तुरंत समझ गयी।अपने महामूल्य शीलधन की रक्षा के लिए वह सजग थी। अवसर आने पर बल के बजाय अक्ल से काम लेने का उसने निश्चय किया।
हमेशा भेजे जाते उपहार निर्मला आनाकानी बगैर स्वीकार लेती है ऐसा जानने के बाद तय किया : 'पंछी जरूर पींजरे में आ गया है।' कारण-विकारवश आत्माओं की सृष्टि, उनके अपने मानसिक, विकारों की प्रतिक्रिया रूप ही लगती है। जैसी दृष्टि ऐसी सृष्टि' - यह लोकोक्ति ऐसी आत्माओं के मानस का प्रतिबिम्ब रखती है।
राजा ने निर्मला को मिलने के लिये नयी तुक लडायी। उसने खास काम बताकर मोदी को एक सप्ताह के बाहरगाँव जाने का आदेश दिया। धर्ममित्र ने जब निर्मला को बाहरगाँव जाने की बात कही तब चतुर ऐसी निर्मला राजा की मनोभावना पहचान गयी। उसने जाते समय पति के सम्मुख अथ से इति तक सर्व हकीकत कह सुनाई।
धर्ममित्र को निर्मलता की पवित्रता, दृढता तथा धीरता के प्रति पूर्ण श्रद्धा थी। वह बाहरगाँव गया। घर के दास दासीयों को निर्मला ने सावधान रहने की सूचना दे दी।
राजा ने दूसरे दिन खास व्यक्ति द्वारा गुप्त संदेशा भेजा, 'आज सांय राजाजी आपके यहां आनेवाले है।' निर्मला पहले से ही जानती थी कि ऐसा कुछ होगा। उसने राजा के योग्य सब तैयारियाँ करवाई।
प्रजा के बालक माने जाते राजा के दिल में पाप भावना का अंधेरा ज्यादा गाढ़ बना । सांय गुप्त रूप से मोदी घर में अकेला घूसा। निर्मला ने राजवी के आतिथ्य के लिये सब तैयारी कर दी थी। राजा एकांत चाह रहा था। निर्मला के देहसौन्दर्य के पीछे पागल बने हुए राजा को आज कोई होश न था। निर्मला के साथ एकांत भोगने के लिए बावला बना था।
निर्मला के आदेश अनुसार घर के नोकर सुवर्णजड़ित थाल में एक के बाद व्यंजन परोसने लगे। महामूल्यवान कटोरों में सुंदर गुलाबजामून परोसे। राजा के मुख में पानी छूटा और मन से समझा कि खास मेरे लिए ही मेरी प्रियतमा ने व्यंजन तैयार किये हैं। भोजन प्रारंभ करने से पूर्व हरेक मीठाई थोड़ी थोड़ी खाई हुई तथा किसीकी झूठी की हुई मालूम पड़ी।
जिन शासन के चमकते हीरे • २०५