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-निर्मला
राजा प्रजापाल के राजकुल में मोदी धर्ममित्र का चलन था। धर्ममित्र प्रामाणिक व्यापारी था। राजकुल में महारानी से लेकर एक सामान्य दासी को भी उसकी दुकान में ठगा जाने का भय नहीं था। गाँव में भी धर्ममित्र का नाम आया तो उसके माल या भाव के लिये किसीको कुछ पूछने की जरूरत नहीं। राजा के मोदी की प्रामाणिकता के लिये यदि कोई प्रेरणामूर्ति थी तो वह धर्ममित्र की सुशील पत्नी निर्मला थी।
निर्मला रूप रूप का अंबार रूपी रति का अवतार थी, फिर भी उसके देह सौन्दर्य के पीछे आत्मा का सौन्दर्य अनुपम था। स्त्री शरीर का शीलहीन सौन्दर्य अवश्य विकृत पुरुषों के संसार के लिये श्रापरूप है लेकिन यदि उस सौन्दर्य के साथ सुशीलता भरी पडी हो तो वह स्त्री समस्त संसार में आशीर्वाद रूप है। सुवास ज्यों पुष्प का मूल्य है, त्यों सुशीलता स्त्री के शरीर की महामूल्य सम्पति है।
प्रजापाल की राजसभा में कई हजूरिये थे, उसमें एक विघ्नसंतोषी नाई था। अयोग्य मनुष्य का संसर्ग भी अच्छे मनुष्यों के जीवन में दाग लगानेवाला बनता है। प्रजापाल राजा के लिए भी ऐसा ही हुआ।
___एक बार राजा के यहाँ गाँव की गपशप चल रही थी, उस समय जीवा नाई ने धीमे से बात रखी, 'मालिक! कहता हूँ, शायद ज्यादा माना जायेगा फिर भी हुजूर के समक्ष कहने में क्या शर्म? हमारे पूरे राज्य में मोदी के घर में जैसा मनुष्य है वैसा तो कोई स्थान पर मिलेगा ही नहीं। अरे खुद मालिक के अंतपुर में भी नहीं।
नाई की जीभ पर ताला न था।आँखों का चमकारा करते हुए बात का मुरमुरा रखा। राजा के निकट उस समय ऐसे ही खुशामतखोरों के सिवा अन्य कोई भी न था। सबने नाई की बात में हामी भरी। राजा का चंचल मन पल भर में विचारों के झूले में झूलने लगा। जीवा विकार का विष बढ़ाने लगा, 'क्या रूप? क्या तेज? अरे! क्या तेज? अरे! क्या सौन्दर्य! मानो इन्द्रलोक की अप्सरा । हुजूर! ऐसा रूप तो जीवनभर में देखा नहीं होगा।'नाई को बोलने की कला किसीसे सीखनी नहीं पड़ती है।
राजा की मनोवृत्ति में विकार का जहर यो धीरे धीरे घुसता गया। “ऐसी सुन्दर स्त्री मेरे मोदी के यहाँ। एक बार तो उसे देख ही लेनी चाहिये, और इसके बाद उसकी ताक़त भी क्या है कि मेरी 'हाँ में 'ना' कह सके?"
राजा के मुंह में पानी आ गया है ऐसा जानकर मौका पाकर जीवा नाई कहा करता था कि मालिक! ऐसा स्त्री रत्न तो आपके राजमहल में ही शोभा देगा। कौए
जिन शासन के चमकते होरे • २०४