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अषाढाभूति
___ कमल सुविभूति तथा जशोदा के पुत्र अषाढाभूति... । उन्होंने ग्यारहवें में वर्ष में धर्मरचि गुरु से दीक्षा ली। अषाढाभूति महा विद्वान अणगार थे। विद्या के बल से उन्हें कई लब्धियाँ प्राप्त हुई थी। एक लब्धि के बल से वे अलग अलग रूप धर सकते थे।
एक बार वे एक नट के यहाँ भिक्षा लेने पधारें। नट ने घर पर मोदक बनाये थे वह अर्पण किये। उपाश्रय पर जाकर गोचरी का उपयोग किया। मोदक स्वादिष्ट और सुगंध की महक से भरपूर थे। अषाढाभूति दुबारा दूसरा रूप धर कर नट के यहाँ से मोदक की भिक्षा माँग लाये। मोदक के उपयोग से जीभ में स्वाद बस गया था इसलिए वे दुबारा रूप बदलकर नट के यहाँ मोदक की भिक्षा के लिये गये। नट चतुर था। वह इस बात को समझ गया कि 'एक ही साधू भिन्न भिन्न रूप धर कर मोदक की भिक्षा ले जाता है। साध है बहुत ही चतुर । उसकी रूप बदलने की कला दाद देने योग्य है। यदि यह साधु अपना बन जाये तो इसके द्वारा बहुत ही धन कमा सकते हैं।' ऐसा सोचकर नट ने अपनी दोनों लड़किया, जिनका नाम भुवनसुंदरी तथा जयसुंदरी था - उन्हें समझाया कि कुछ भी करके इस मुनि को भरमा लो। पिता से ऐसी छूट पाकर नौजवान दोनों लड़कियों ने साधु के दुबारा आने पर नखरें इशारे करके मुनि को मोहांध बनाया और कहा, 'अरे नवजवान! घर घर भिक्षा के लिये क्यों भटक रहे हो? यहाँ ही रह जाओ। यह युवा काया आपको सौंप देंगे।' मुनि चित्त से भ्रष्ट तो हुए ही थे, विषयविलास भोगने के लिए तैयार हुए। ___अषाढाभूति ने गुरु के पास जाकर गुरु आज्ञा लेकर जलदी वापस आऊँगा यूं.कहा, उपाश्रय पर पहुँचकर गुरु को सब बात बताई और कहा, 'घर घर भिक्षा माँगना मुझसे नहीं होगा। यह चारित्र पालना अब मेरे लिये मुश्किल है, दो नटिनी मैंने देखी है, अब उनके साथ संसार के भोग भोगने हैं। इसलिए अब मझे छुट्टी दे दो, मैं सिर्फ आप से छट्टी लेने आया है।'
गुरुने खूब समझाया, 'नारी के मोह में तूं ऐसा अपयश देनेवाला कार्य क्यों कर रहा है? यह नारियाँ तूझे दुर्गति में धकेल देगी। वे नीच और कपट
जिन शासन के चमकते हीरे • ८५ ------