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बाला सुसुमा रोना बंद कर देती। ___ कुछ समय पश्चात् श्रेष्ठी को इस बात की जानकारी मिली, उसने इस दासीपुत्र - चिलाती पुत्र को अपने घर से निकाल दिया।
यहाँ से निकाले जाने पर वह जंगल में गया। सिंहगुफा नामक भील लोगों के दल में पहुँचा। दलपति की मृत्यु होने पर उसका श्रेष्ठ शरीर वैभव देखकर भील लोगों ने उसे अपना स्वामी बनाया।
चिलाती पुत्र को सुसुमा की याद सताया करती थीं। विषय रूपी शस्त्र की पीडा बढ़ती चली, इस कारण अपने सर्व सेवकों को धन सार्थवाह के यहाँ चोरी करने ले गया एवं सेवकों को कहा, 'जो मालसामान हाथ लगे वह सर्व सेवकों का और सुसुमा को उठा लाये तो वह चिलातीपुत्र की।'
रात्रि के समय सब चोर धन वह सेठ के यहाँ पहुँचे। कई चोरों को देखकर धनसेठ अपने पाँच पुत्रों को लेकर प्राण बचाने के लिए एकांत में छुप गये।
सामना करनेवाला कोई न होने से चोरों ने खूब धन बटोर कर और चिलातीपुत्र सुसुमा को उठाकर बिदा हो गये। चोरों के घर से बाहर निकलते ही सेठ ने कुहराम मचा दिया; नगररक्षक वहाँ आ गये। उन्हें लेकर सेठने अपने पुत्रों के साथ चोरो का पीछा किया। नगररक्षकों और सेठ को अपने पीछे पीछे आते देखकर चोरी का माल रास्ते के बीच फेंककर चोर अपने रास्ते पर दौड चले। अपने पीछे सेठ और पाँच पुत्रों को आता हुआ देखकर चिलातीपुत्र ने सुसुमा का वध कर डाला। चिलातीपुत्र ने तेज हथियार से उसका सर काटकर सिर हाथ में लिया व धड वहीं पर छोड़कर भाग गया। सेठ
और पुत्रोंने सुसुमा का धड देखा। सेठ ने अपनी पुत्री और पांचों भाइयों ने अपनी बहिन की ऐसी क्रूरतार पूर्ण मृत्यु देखकर बड़ा विलाप किया और घर लौटते समय वीर प्रभु का उपदेश सुना। देशना सुनकर पाँच पुत्रों ने श्रावक धर्म स्वीकार और सेठ ने तो संयम ही ग्रहण कर लिया। उत्तमतापूर्वक संयम पालकरा तथा उग्र तपश्चर्या करके सेठ स्वर्ग पधारे।
चिलातीपुत्र सुसमा का सिर हाथ में लेकर तेज गति से मार्ग काट रहा था। उसका शरीर खून से भीगा हुआ था, सुसुमा की हत्या के कारण वह मानसिकरूप से टूट चुका था। वह अपने आप पर क्रोधित हो उठा था। मार्ग में उसने एक मुनिराज को कार्योत्सर्ग दशा में खड़े देखा। मुनि को देखकर
जिन शासन के चमकते हीरे . १०५