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-मानतुंगसूरि
__ भोज राजा की धारा नगरी में बाण एवं मयूर - नामक साला बहनोई - दो पण्डित रहते थे। दोनों अपनी पण्डिताई के लिए परस्पर ईर्ष्या रखते थे। दोनों ने अपनी अपनी पण्डिताई से राज्यसभा में प्रतिष्ठा पायी थी। दोनों राज्यमान्य पण्डित थे। एक बार बाण कवि अपनी बहिन से मिलने उसके (मयूर के) घर गये। वहाँ उसका अच्छा सत्कार करके रात्रि को दालान में बिछाना लगाकर उसे सुलाया।
घर में मयूर और उसकी स्त्री (बाण की बहिन) सो गये परंतु रात्रि के समय दम्पति में किसी बात पर तकरार हो गई। वह सब टंटा बाहर सोते बाण ने सुन लिया। मयूर अपनी स्त्री को खूब समझाता है पर वह स्त्री मानती नहीं है। प्रातः होने लगी थी तो मयूर उसे मनाने के लिए एक कविता बोलने लगा। उसके तीन पद स्त्री को सुनाये तब बाहर सोते हुए बाण से रहा न गया, सो चौथा पद उसने पूर्ण किया। सुनकर बहिन को क्रोध चढ़ा। अपने मीठे कलह में अनचाही रीत से भाई की दखलगिरी होने से उसे श्राप दिया कि 'जा तू 'कुष्टि' कोढी हो जायेगा।' वह सती स्त्री थी, इसलिये बाणकवि शीघ्र कोढी बन गया। प्रात:काल राजसभा में मयूर कवि पहले से बैठा हुआ था तब बाणकवि आया। तब मयूर बोला, आईये... पधारिये, कोढी बाण ! आईये।' मयूर के ऐसे वचन सुनकर राजा भोज बोला, 'उसे कोढ किस प्रकार हुआ?' मयूर ने हकीकत कह सुनाई । इतना ही नहीं, बाण के अंगो पर प्रत्यक्ष कोढ के सफेद ददोरे बताये। इस कारण भोज राजा ने जब तक उसे कोढ़ मिटे नहीं तब तक राजसभा में आने की तथा नगर में रहने की सख्त मना फरमा दी। बाण कवि इससे बड़ा लज्जित हुआ और अभिमान वश वहाँ से उठकर तत्काल नगर के बाहर चल दिया।
नगर के बाहर आमने-सामने बाँस के दो स्तंभ खड़े करके, बीच में ऊँची रस्सी बांध दी और उसमें एक छः बंधनवाला सींका बांधकर उसमें वह स्यवं (बाण कवि) बैठा और नीचे अगिनकुण्ड जलाकर सूर्यदेवता की स्तवना संबंधी एक एक काव्य रचकर बोलकर एक एक सीके से रस्सी अपने हाथ
जिन शासन के चमकते हीरे • १७४