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- सती सुलसा
राजगृही नगरी में श्रेणिक राजा राज्य करता था। उसके यहाँ नाग नामक सारथि था। श्रेष्ठ शील से, गुण से शोभित सुलसा नामक उनकी स्त्री थी। आँगन में मस्ती से खेलते हुए अन्य श्रेष्ठी पुत्रों को खेलते हुए देखकर वह सोचने लगा, 'अहो ! जहाँ छोटे छोटे बालक न हों उन घरों को घर न कहा जाये। हं... मेरा अच्छा वैभव लेकिन संतति न हो वह अच्छा नहीं' - ऐसे विचार से वह चिंता करने लगा। ___ अपने पति को शोकपीड़ित देखकर सुलसा बोली, 'स्वामी आप क्यों खेद करते हो? धर्म का विशेष रूप से सेवन कीजिये। धर्म के प्रभाव से आपकी सर्व मनोकामनाएं पूर्ण होगी और आज से मैं भी विशेषरूप से धर्म आराधना करूंगी।' ____दोनों ही धर्मआराधना भली प्रकार से कर रहे थे। पुत्र न होने की चिंता नाग रथिक को सदैव सताये जा रही थी। पति की इस स्थिति को देखकर सुलसा ने एकबार पूछा : अहो... प्राणेश ! क्यों, किसकी चिंता करते हो? ऐसे खोये खोये क्यों रहते हो? आपके चित्त में जो भी चिंता हो वह कहो।' प्रिया के ऐसे वचन सुनकर नाग रथिक हँसकर बोला, 'हे प्रिये ! मुझे तुझसे छिपाने जैसा कुछ भी नहीं है जो तुझे न कहा जाय, तुझे आज तक पुत्र नहीं हुआ उसका मुझे भारी दुख है।'
पति के ऐसे वचन सुनकर सुलसा बोली, 'हे स्वामीनाथ ! ऐसा लगता है कि मेरे उदर से बालक की उत्पत्ति नहीं होगी। आप दूसरी स्त्री ले आओ, उसे पुत्र होगा सो आप पुत्रवान बनेंगे।' तब पति ने कहा, 'हे प्राणेश्वरी ! यदि मुझे कोई राज्यसहित.अपनी पुत्री दे तो भी मैं अन्य स्त्री की कामना नहीं रखता। खीर को छोड़कर दलिया कौन खाना चाहे ? यदि इस भव में तूझ से पुत्र प्राप्ति होगी तो ठीक, नहीं तो पुत्र बिना रहेंगे।'
. स्वामी ने ऐसा कहा इसलिये सुलसा सोच में डूब गई। ____ 'मनुष्य के लिये धर्म ही कल्पवृक्ष है, वही चिंतामणि है और वही उसकी कामधेनु है, सो धर्म ही इच्छित फल प्राप्त करने का एकमात्र साधन है।' ऐसा विचार करके सुलसा धर्मकार्य के लिए विशेष तत्पर हुई; जिनपूजा करने लगी और चतुर्विध आहार सुपात्रों को देने लगी। और ब्रह्मचर्य, भूमि पर शयन और आयंबिल का तप
जिन शासन के चमकते हीरे • १४२