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सुदर्शन ने यह बात सच मान ली। इसमें कुछ कपट होगा? ऐसा खयाल तक उसे न आया और वह कपिला के साथ घर आया। मकान में दाखिल होते ही उसने पूछा, 'पुरोहित कहाँ है?' उसे घर के अन्दर आगे लेजाकर आखिरी कमरे में पहुँचते ही कपिला ने दरवाजा अन्दर से बंद कर दिया और निर्लज्ज, बीभत्स नखरें करने लगी व क्रीड़ा की माँग की। सुदर्शनपूरी स्थिति को पहचान गये और कपट-जाल से पूर्णरूप से बचने का उपाय सोचने लगे। सही ढंग से समझाने से कपिला माननेवाली थी नहीं। उसे समझाने से न समझे व खोटा आरोप भी लगा दे तो? चिल्ला-चिल्लाकर लोगों को इकठ्ठा कर ले व बेइज्जती हो ऐसा समझकर हँसकर सुदर्शनने कहा : अरे मूरख! तूने बड़ी भूल की है। जो कार्य के लिए तू मुझे यहाँ लाई है, उसके लिए तो मैं बेकार हूँ। मैं नपुंसक हूँ और मेरे पुरुष भेस से तू धोखा खा गई है।'
सुदर्शन का जवाब सुनकर कपिला ठंडी पड़ गई। उसका कामावेश बैठ गया। कितनी मेहनत और कैसा परिणाम! अपनी मूर्खता के परिणाम से बैचेन हो उठी
और सुदर्शन को धक्का मारकर 'चलता बन' कहकर घर से बाहर निकाल दिया। सुदर्शनने सोचा, 'मैं झूठ नहीं बोला हूँ। परस्त्री के लिए मैं नपुंसक ही हूँ। वे शीघ्रता से अपने घर आ गये। दुबारा कभी भी ऐसा न हो इसलिये किसीके घर भविष्य में अकेले न जाने की प्रतिज्ञा की।
एक बार चंपानगरी के राजा दधिवाहन ने इन्द्रमहोत्सव का आयोजन किया। वहाँ महारानी अभया के साथ पुरोहितपत्नी कपिला' भी थी। एक ओर सुदर्शन सेठ की पत्नी मनोरमा भी अपने छः पुत्रों के साथ महोत्सव में भाग ले रही थी। उसे देखकर कपिला ने महारानी अभया को पूछा : 'यह रूपलावण्य के भण्डार समान बाई कौन है?' अभया ने कहा, 'अरे! तू इसे पहचानती नहीं है? यह सेठ सुदर्शन की पत्नी है और उसके साथ उसके छ: बेटे हैं। यह सुनकर कपिला को आश्चर्य हुआ। यदि सुदर्शन की गृहिणी है, तो बड़ी कुशल स्त्री है - ऐसा मानना पड़ेगा।' रानी अभया ने पूछा, 'कौनसी कुशलता?' कपिला ने कहा, 'वही कि इतने पुत्रों की माता है?' रानी कुछ जानती न थी सो समझ न सकी इसलिए कहा, 'जो स्त्री का स्वाधीन पति है - वह ऐसे रूपवान और इतने पुत्रों की माता बने उसमें उसकी क्या कुशलता?'
कपिला ने कहा, 'देवी! आपकी बात तो है सच्ची लेकिन वह तब हो सके जब पति पुरुष हो, सुदर्शन तो पुरुष के भेस में नपुंसक है।' अभया ने पूछा, 'तूने किस प्रकार जाना?' रानी के पूछने पर कपिलाने अथ से इति तक की स्वयं अनुभव
जिन शासन के चमकते हीरे • १२४