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राजा से मिलकर धर्म आराधना करने के लिए सेठ नगर में रूकने की आज्ञा ले आये। वे नगर के एकांत स्थल में पौषध व्रत लेकर कायोत्सर्ग में स्थिर रहे। ___अभया रानी एवं धावमाता पंडिता ऐसे ही मौके की ताक में थी। उन्हें मालूम होमया कि सुदर्शन सेठ कौमुदी महोत्सव देखने जानेवाले नहीं है। नगर में रुककर "कायोत्सर्ग में रहेंगे।अभया के पास जाकर पंडिता ने कहा, 'तेरे मनोरथ शायद आज पूर्ण होंगे। तू उद्यान में कौमुदी महोत्सव देखने मत जाना।' इस हिसाब से रानी भी सरदर्द हो रहा है - ऐसा बहाना निकालकर महोत्सव मे न गई। भोले भाव से राजा ने भी बहाना मान लिया। वे रानी को आवास में ही छोड़कर महोत्सव मे भाग लेने गये। ___अब धावमाता ने अपना दाव आजमाया। राजमहल में कुछ मूर्तियाँ ढककर लानी है - ऐसा कहकर पहले कुछ मूर्तियाँ ढककर सेवकों से उठवायीं और कायोत्सर्ग में खड़े सुदर्शन सेठ को भी कपड़ो से ढककर सेवकों द्वारा उठवाकर रानी के आवास मे रख दिये ।सुदर्शन सेठ तो कायोत्सर्ग में थे जिसके कारण सेवकों को सहूलियत मिल गई थी। ' सुदर्शन को लाने के बाद पण्डिता वहाँ से चल दी और अभया ने अपनी निर्लज्जता दिखाना शुरू कर दिया। प्रथम बिनती करके समझाने का प्रयत्न किया
और तत्पश्चात अंगस्पर्श, आलिंगन वगैरह करके देखा, परंतु सुदर्शन के एक रोम पर भी उसका असर न हुआ। मेरु की भाँति वे अटल रहे । जिस प्रकार जड पूतले को कुछ असर नहीं होता है उसी प्रकार सुदर्शन के उपर अभया की कामचेष्टा का कुछ असर न पडा। वे निर्विकार ही रहे।
रानी अभया ने जब अंगस्पर्श आदि की भयंकर कुटिलता प्रारंभ की तो सुदर्शन ने मन से प्रतिज्ञा कर ली कि 'जब तक यह उपसर्ग न टले तब तक मुझे कायोत्सर्ग ही रहे और जब तक कायोत्सर्ग न टले तब तक मेरा अनशन हो।' इस प्रतिज्ञा को समतापूर्वक पालने के लिए सुदर्शन धर्म-ध्यान में सुस्थिर बने। एक तरफ पूरी रात अभया की कुचेष्टाएँ चलती रही। जब ऐसे उपसर्गो से भी सुदर्शन जरा से भी चलित न हुए तो अभया ने धमकियाँ देना शुरू किया और साफ शब्दों में कह दिया, 'या तो मेरे वश हो जा, नहीं तो यम के वश होना पड़ेगा, मेरी अवगणना मत कर, मुझे वश न हुआ और मेरी इच्छा की पूर्ति न की तो समझ ले अब तेरी मौत हो जायेगी।
सुदर्शन जिंदगी को प्रिय समझकर सदाचार छोड़ने के लिये तैयार न थे। असाधारण दृढ़ मन से पूरी रात अभया द्वारा होते उपसर्गों को सहन किया। प्रभात
जिन शासन के चमकते हीरे . १२६