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के भाव शुद्ध थे। इसलिए वह मरकर देवी हुई लेकिन सोमभट्ट के भाव इतने शुद्ध न थे। वह मरण कष्ट के कारण देवपने में भी अंबिका की सवारी सिंह रूप मे देव बना। इस प्रकार वे देव एवं देवी बने। ____ अंबिका को भगवान नेमनाथ पर अथाह प्रीति थी, इस कारण वह देवी बनकर भगवान नेमनाथ की अधिष्ठायिका देवी बनी। जो कोई भगवान नेमनाथ की सेवा, भक्ति-श्रद्धा से करता है, उसकी मनोकामनाएं देवी अंबिका पूर्ण करती हैं। ____ सोमभट्ट देव हुए लेकिन उन्हें सिंह का रूप धरकर अंबिका देवी का वाहन बनना पड़ा है।
जय बोलो देवी अंबिका की...।
गधा कुछ भी अपेक्षा बिना मनुष्य की निष्काम भाव से मजदूरी करने का उसने समर्पण व्रत लिया और पीठ पर उठा सके उतना... अरे! उससे भी अधिक माल भर भर के उसने मनुष्य का बोझ उठाया।
___ इतनी भारी सेवा करने के बाद भी उसने कभी अहंकार न किया। मनुष्यों ने डण्डे मारे तो भी सहन किये। अपमान भी निगल लिया। खाने के लिए घास भी न माँगा, रहने के लिए छपरा न चाहा। धूरे पर घूमकर ही पेट भरा।
लेकिन हृदय में थोड़ा सा भी रंज न रखा।
इतना ही नहीं, इतने ढेर सारे अपमान, मार और बेगार के बाद भी उसने अपना आनंद धूरे की धूल पर लोटकर ही मना लिया।
वाह रे निष्काम समर्पणव्रती! गधे जैसा समर्पणव्रत हम भी अपनायें।
जिन शासन के चमकते हीरे • ७४