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गति होगी! भला-बुरा सोचकर वह उस नट से मिले और अपने पुत्र के लिए उसकी पुत्री की मांग की। नट बोला, 'अच्छा! यदि आपके पुत्र की ऐसी ही इच्छा हो तो उसे हमारे पास भेजो।'
__कोई और मार्ग न होने से पिता ने इलाचीपुत्र को नटपुत्री के साथ ब्याह करने की स्वीकृति देकर पुत्र के नट को पास भेजा। नट ने इलाची पुत्र को कहा, 'यदि नट पुत्री से ब्याह करना हो तो हमारी नृत्यकला सीख। उसमें प्रवीणता मिलने पर यह कन्या तूझको दूंगा।'
कामार्थी इलाचीकुमार नृत्यकला सीखने लगा। अल्प समय में ही वह नृत्यकला में माहिर हो गया। लंखीकार इलाचीकुमार और अपनी पुत्री को नचाते हुए द्रव्य उपार्जित करने लगा। खूब द्रव्य उपार्जन के बाद महोत्सवपूर्वक पुत्री का ब्याह करने की लंखीकार ने अनुमति दी।
बड़े पैमाने पर द्रव्य उपार्जन करना हो तो कोई बड़े राज्य में जाकर राजा-महाराज को नृत्य से खुश करना चाहिये - ऐसे खयाल से लंखीकार इलाचीकुमार तथा उसकी पूरी मण्डली को लेकर बेनाटन नगर को गये। वहाँ इलाचीकुमार ने राजा महीपाल को कहा, 'हमें आपको एक नाटक बताना हैं।' राजा ने हाँ कह दी। उसने विनय सहित नाट्य और नृत्य के प्रयोग शुरू किये। बांस की दो घोड़ी बनायी। दोनों के बीच एक रस्ती बांधकर वह रस्से पर नृत्य करने लगा।
उस समय राजा की नज़र लंखीकार की पुत्री पर पड़ी और वह उस पर मोहित हुआ। उसे कैसे पाया जाय? उसने सोचा कि यह नट रस्से पर से गिर जाय और मर जाय तो नटनी को पा सकेंगा। इस कारण दुबारा रस्से पर नाच करे को कहा। इलाचीकुमार ने दुबारा रस्से पर जाकर उत्कृष्ट नृत्य किया लेकिन राजा खुश न हुआ। उसने फिर से निराधार रस्से पर नृत्य करने को कहा। इस बार राजा के भाव ऐसे थे कि नटकार रस्से पर से सन्तुलन गँवा दे और गिरकर मर जाये और नटीनी को प्राप्त कर सके। इलाचीकुमार के भाव ऐसे हैं कि राजा कैसे खुश होकर बड़ा इनाम दे और नटीनी के साथ ब्याह करूं। दोनों के भाव भिन्न भिन्न थे। इस प्रकार राजा बार बार नृत्य करने को कहते थे। इलाचीकुमार समझ गया कि राजा की भावना बुरी है। वह मेरी मृत्यु चाह रहा है। इस बार इलाचीकुमार ने दूर एक दृश्य देखा।
जिन शासन के चमकते हीरे • ७९