________________
अपने दुर्भाग्य पर विचार करते हुए मन में श्री नवकार मंत्र गिनती हुई जंगल के मार्ग पर चल रही थी।
सिद्ध और बुद्ध दोनों को प्यास लगी; सिद्ध ने माँ को कहा, 'माँ, खूब प्यास लगी है, माँ! पानी दे।' बुद्ध ने भी माँ का हाथ खींचते हुए पानी की माँग की। अंबिका चारोंओर देखती है, कहीं भी पानी दिखता नहीं है।
वहाँ एक सूखा सरोवर दिखा। अंबिका ने सोचा, 'यह सरोवर पानी से भरा हुआ होता तो!' वहाँ एक चमत्कार हुआ। सरोवर पानी से भर गया! किनारे पर खड़े आम्रवृक्ष पर पके हुए आम दीखें! अंबिका के सतीत्व का प्रभाव था यह ! उसकी धर्मदृढ़ता का यह चमत्कार था। अंबिका ने दोनों बालकों को पानी पिलाया और पेड़ पर से आम तोड़कर खिलायें। सिद्ध और बुद्ध खुश खुश होकर पेड़ के नीचे खेलने लगें। ___अंबिका के घर से निकलने के बाद घर पर भी ऐसा ही चमत्कार हुआ। सास देवीला बड़बड़ाते हुए रसोईघर में पहुँची। उसकी आँखें आश्चर्य से फैल गई। जिस बर्तनों में अबिका ने मुनिराज को दान दिया था, वे बर्तन सोने के हो गये थे। पके हुए चावल के दाने मोती के दाने बन गये थे। रसोई के दूसरे बर्तन भी रसोई से भरे पड़े थे।
देवीला हर्ष से पागल हो गई। उसने बेटे सोमभट्ट को बुलाया और यह सब दिखाकर कहा, 'देख, अंबिका तो सती है सती, देख! उसका प्रभाव।' सोमभट्ट ने सोने के बर्तन देखे। चावल का पतीला मोतीयों के दानों से भरा देखा। सोमभट्ट का रोष उतर गया। वह अंबिका को ढूंढने निकल पड़ा। अंबिका को ढूंढते ढूंढते सोमभट्ट जंगल में आ पहुँचा। दूर से दोनों बालकों को खेलते हुए देखा तो उसने आवाज़ दी : 'अंबिका... ओ अंबिका! पतिकी आवाज़ सुनकर अंबिका कांप उठी, उसे ऐसा लगा कि जरूर वह मारने आया है, दोनों बालकों को लेकर दौड़ी और नज़दीक के एक कुए में छलाँग लगा दी, तीनों के प्राण पंखे उड गये। सोमभट्ट वहाँ पहुँचा लेकिन देर हो चुकी थी। कुए में अपनी पत्नी और दोनों बालकों को देखा, वह समझ गया कि तीनों के प्राणपंखेरू उड़ चुके हैं। वह भी कुएं में कूद पड़ा। कुछ ही क्षणों में उसकी मौत हो गई।
अंबिका मरकर देवलोक में देवी हुई हैं। मरते समय अंबिका के मन
जिन शासन के चमकते हीरे • ७३