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करके कहा : 'हे भगवंत! चलिये मैं आपको नगर का मार्ग बता दूं।' मुनि नयसार के साथ चले और नगरी के मार्ग पर पहुँच गये। वहाँ मुनियों ने एक वृक्ष के नीचे बैठकर नयसार को धर्मोपदेश दिया। सुनकर अपनी आत्मा को धन्य मानते हुए नयसार ने उसी समय समकित प्राप्त किया एवं मुनियों को वंदना करके वापिस लौटा और सर्व काटे हुए काष्ट राजा को पहुँचाकर अपने गाँव आया।
तत्पश्चात् यह दरियादिल नयसार धर्म का अभ्यास करते, तत्त्वचिंतन और समकित पालते हुए काल निर्गमन करने लगा। इस प्रकार आराधना करते हुए नयसार अंत समय पर पंच नमस्कार मंत्र का स्मरण करके, मृत्यु पाकर सौधर्म देवलोक में पल्योपम आयुष्यवाला देवता बना। यही आत्मा सत्ताईसवें भव में त्रिशला रानी की कोक्ष से जन्मकर चोबीसवें अंतिम तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी बनी।
प्रीतम! मेरे दिल में रहना... प्रीतम! मेरे दिल में रहना, भूलूं तो तूं टोकते रहना। माया का कीचड़ ऐसा, पैर धंस जावें, हिंमत मेरी काम न आये, तूं पकड़ना बाँहे प्रीतम! मेरे... मर्कट जैसा यह मन मेरा, जहाँ तहाँ कूदान खावें, मोह मदिरा उपर पीली, और पाप से प्रवृत्त होवें। प्रीतम! मेरे... कर्जा चुकाने आये जग में, कर्जा बढ़ता जावें, छूटने का एक ही किनारा, अब तो तूं छुडावे तो छूटे। प्रीतम! मेरे... पुनित का यह दर्द अब तो मुख से न कहा जावे, सौंपा मैंने तेरे चरण में खुदको होना हो सो होवे प्रीतम! मेरे...
जिन शासन के चमकते हीरे . ४६