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जीव से क्षमापना की अभिव्यक्ति कर दी।
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कुकर्मी, पापी पालक मंत्री एक एक साधू को कोल्हू में डालकर पेरने लगा। स्कंदक मुनि को शिष्यों का ऐसा दृश्य देखकर अधिक पीड़ा होगी-ऐसा सोचकर दुष्ट बुद्धिवाले मंत्री ने स्कंदक मुनि को कोल्हू के नज़दीक बांध रखा। कुचलाते हुए साधुओं के अंगछेद होने से खून की धारा सराबोर होते स्कंदक मुनि समयोचित अमृत बिन्दु जैसे उपदेश वाक्यों से महानुभावों को आराधना कराते गये। इस प्रकार निर्मल मनवाले महात्मा जो शत्रु और मित्र प्रति समान दृष्टिवाले थे - वे यंत्र से कुचलाती हुई काया की असह्य पीड़ा सहन करते हुए केवलज्ञान पाकर सिद्ध बने । क्रमानुसार ४९९ महर्षि कोल्हू में पीस दिये गये। अब केवल एक बालमुनि बाकी थे । स्कंदाचार्य ने पालक मंत्री को कहा, 'इस बालमुनि के कुचलाने की क्रिया - वेदना मैं नहीं देख पाऊंगा इसलिये प्रथम मुझे पेर डालो।' लेकिन क्रूर बुद्धिवाले पालक स्कंदाचार्य को अधिक दुःखी करने के लिए उनके सामने ही बालमुनि को कोल्हू में फेंक दिया। बालमुनि को भी शांतिपूर्वक ऐसी आराधना कराई कि उन्होंने शुक्लध्यान रूपी अमृत झरने में कर्मों का नाश करके केवलज्ञान पाकर मोक्ष सुख पा लिया । अब ५०० मुनियों को आराधना करानेवाले स्कंदकाचार्य की बारी आई। लेकिन कर्म के उदय से उस समय उन्होंने क्रोधित होकर सोचा, 'ये राजा और मंत्र शिक्षापात्र हैं। यदि मुझे जिंदगी में किये हुए दुष्कर तप और चारित्र का फल मिलनेवाला हो तो उसके प्रभाव से मैं अगले जन्म में इन सबको जला देनेवाला बनूं' - ऐसा संकल्प करके स्कंदकाचार्य कालानुसार देव हुए।
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स्कंदकाचार्य की बहिन पुरंदरयशा झरोखे में बैठी थी, जो उस नगरी के राजा की रानी थी। एक पक्षी खून से भरा रजोहरण चोंच से उठाकर उड चला था, भावितव्यता योग से वह रजोहरण झरोखे में पुरंदरयशा के पास जा गिरा। उठाकर देखतें ही रजोहरण पहचान लिया कि यह तो भाई की दीक्षा के समय स्वयं उसने ही तैयार किया था। भाई की हत्या को देखकर राजाजी को खूब उपालंभ दिया और कहा, 'है साधूशत्रु ! पापी ! तेरा इसी समय नाश होगा।'
पुरंदरयशा ने सोच विचार करके संसार में न रहकर परलोक का ज्ञान बटोरने श्री मुनि सुव्रतस्वामी के पास जाकर दीक्षा ग्रहण की। स्कंदकाचार्य ने देवता के भव में अवधिज्ञान से पूर्व भव का वृत्तांत जाना और क्रोध से पूरे नगर को जला डाला । आज भी वह स्थान दण्डकारण्य नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रकार ५०० साथी साधु समता एवं आराधना के प्रताप से मोक्ष पा गये लेकिन स्कंदकाचार्यने विराधना के कारण मोक्षसुख न पाया। भगवान कथित भविष्यवाणी गलत होती भी कैसे?
जिन शासन के चमकते हीरे ६०