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अमरकुमार
१. अमरकुमार एक ब्राह्मणपुत्र था। अत्यंत गरीब था। साथ साथ अत्यंत
सीधा-सरल था, लेकिन बेचारा माता पिता को अप्रिय था। माता उसके
प्रति भारी द्वेष रखती थीं। कभी भी उसे अच्छा भोजन नहीं देती थी। २. एक दिन वह लकड़ी काटने जंगल गया। वहाँ जैन गुरु भगवंत से
नवकारमंत्र सीखा। ३. वहाँ का राजा महल बनवा रहा था। लेकिन दरवाजा रोज गिर जाता था।
तब किसी ज्योतिषी का कहना था, आप एक बत्तीस लक्षणवाले बालक की बलि दो तो ही दरवाजा खड़ा रहेगा। राजा ने जब गाँव में ढिंढोरा पिटवाया कि कोई उत्तम बालक बलि के लिए देगा, उसे सवा लाख सुवर्णमुद्राएँ दी जायेगी। तब माता-पिता धन की लालसा से अमरकुमार को बेचने तैयार हो गये। अमर खूब रोये... सबके पास गिड़गिडाये... बोले कि 'मैं आपकी सेवा करूंगा। कृपा करके मुझे बचाओ। मृत्यु से छुड़ाईये।' परंतु कोई
बचा न सका। अंत में राज्य के सिपाही पकड़कर ले गये। ६. जब होम की तैयारी हुई, कोई ने शरण न दी तो जैनमुनि ने दिये
हुए 'सौ' नवकारमंत्र' गिनने लगे। एकमात्र उनके स्मरण से एक दैवी चमत्कार हुआ। अग्नि शांत हो गई। देव सिंहासन पर बिठाकर अमरकुमार को ले गये। राजा प्रजा सबकी मृत्यु हो गई। बालक के जल छिड़कने पर सब जीवित हो गये। पश्चात् अमरकुमार
ने दीक्षा ली, फिर भी उनकी माता ने उन्हें मार दिया। | ७. अंत में समाधिभाव से मृत्यु होने से स्वर्ग पधारे।
धन्य अमरकुमार