Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 4
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 14
________________ शरीर स.सि./२/४/११/३ युगपदेकस्यात्मनः कस्यचि जाणे । अपरस्य त्रीणि औदारिकले जसकार्मणानि मै क्रियिकरी जसका मानि या अन्यस्य चत्वारि बीदारिकाहार तैजसकार्मणानि विभागः क्रियते । एक साथ एक जीवके तेजस और कार्मणसे लेकर चार शरीर तक पिसे होते हैं । ४३० किसीके तेजस और कार्मण ये हो शरीर होते हैं। अन्यके औदारिक तेजस और कार्मण, या क्रियिक तेजस और कार्मण मे तीन शरीर होते हैं। किसी दूसरेके औदारिक तेजस और कार्मण तथा आहारक ये चार शरीर होते हैं । इस प्रकार यह विभाग यहीं किया गया (रा. वा./२/४१२३/३/१५०/१६) दे.ऋ१० आहार नै किकि शुद्धिके एक साथ होनेका विरोध है। २. शरीरोंके स्वामित्वकी आदेश प्ररूपणा संकेत अप. अपर्या आहा आहारक; ate. औदारिक; छेदो छेदोपस्थापना: पर्याप्त वा भावर बैंक नै क्रियिक; = सा. - सामान्य; सू सूक्ष्म । घ. नं. १४/५.६ / सू. १३२ - १६६/२३८-२४८) प्रमाण २. मति मार्गणा १३२ - | नरक सा. १३३ १३४ १३५ १३६ मनुष्य सा. प. मनुष्यणी अप. मनुष्य अप. १३७ १३८- देव. सा. विशेष = १३६ २. इन्द्रिय मार्गणा १४० १४१ ऐकेन्द्रिय सा. वा. प. पंचेन्द्रि साप एकेन्द्रि, बा, अप एकेन्द्रि, सू. प, अप. विकलेन्द्रि, प. अ. पंचेद्रि अप ३. काय मार्गणा १४३ 11 मार्गणा तिच सा. पं. पं. तियंचनी प. तियंच पंचे, अप. १४४ १४५ १४४ १४६ विशेष 93 १४७ १४८ 11 तेज वायु सा. 11 त्रस सा. प. शेष सर्व प. अप 11 १४२ ४. योग मार्गणा बा. प. पाँचों मन वचन योग Jain Education International काय सामान्य बौदारिक औदारिक मिश्र क्र. क्र. मिश्र आहा. आहा. मिश्र कार्मण -3 Mamla संयोगी विकल्प २,३ २,३,४ २,३ २,३,४ २,३ २,३,४ २.३ 3 २,३,४ = 31 २,३ ३.४ २,३,४ ३,४ ३ ३ ४ २,३ औदारिक ब्रेक्रियिक X ::: : x X : " " " :::::: 11 x X : " :: x : आहारक तेजस x X :::x x x x X X x x x X X : x xx ::: X ११ X X X : : : :: 19 ::: : :: 1 3 : " " :: 11 :: === ::::: ::::: :: 17 11 प्रमाण ५. वेद मार्गणा १४६ १५१ ६. कषाय मार्गणा १५० १५१ अकषाय ७. ज्ञान मार्गणा १५२ | मतिबूत अज्ञान विभंग ज्ञान १५३ १५४ १५३ " १६० १०. १६१ १६९ पुरुष स्त्री नपुंशक अपगत वेदी १५५ केवलज्ञान ८. संयम मार्गणा १५६ :: 1 " मार्गणा 11 चारों कषाय १५७ १५६ १५८ असंयत ९. दर्शन मार्गणा १५६ | " मति, श्रुत, अवधिज्ञान मन:पर्यय कृष्ण, नील, कापोत पीत, पद्म, शुक्ल 55 १२. मध्य मार्गणा --- यथाख्यात संयतासंयत संयत सा. सामायिक घेरो परिहार, सूक्ष्म भव्य अभव्य १२. सम्यक्त्व मार्गणा अदर्शन दर्शन मागंणा / १६४ १६३ मिथ्यादृष्टि १२. संधी मार्गणा १६५ संज्ञी असंज्ञी सम्यग्दृष्टि सा. क्षायिक, उपशम, वेदक सासादन मिश्र ३. शरीरका कथंचित् इष्टानिष्टपना १४. आहारक मार्गणा १६६ | आहारक अनाहारक जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only संयोगी विकल्प २,३,४ ३ २,३,४ ३ २,३,४ ३,४ २,३,४ ३,४ ३ ३.४ ३ ३,४ २,३,४ २,३,४ ३ २,३,४ २,३,४ २,३,४ " 97 ३,४ २,३,४ २,३,४ 15 ३,४ २,३ ३. शरीरका कथंचित् इष्टानिष्टपना १. शरीर दुःखका कारण है औदारिक वैक्रियिक आहारक_ ::: " :: ::: X: : ::: ११ ::: :: 19 „ :: " x :: :: X X X X F X : : Cex :::: x X X : X X ::::: ::::: × | × X ::::: ::::: :: " X X = 11 X X : x :: x = X : x x x x :: : x : x X X X : ? : x ::: ::: 19 ::: कार्मण :: :: ::: :: :: == 31 91 11 29 ::::: ::::: :: " 11 :: :: स.श./मू./१५ मूल संसारदुःखस्य देह एवारमधीस्ततः । त्यक्त्वैनां प्रविशेद हिरव्यान्द्रयः ॥१४- इस शरीर में आत्मबुद्धिका www.jainelibrary.org

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