Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra से होनेवाले दर्शन को अचक्षुदर्शन कहते हैं । 14. अचल :- जो कभी चलित न हो, वह अचल कहलाता है । जैसेइंद्र का सिंहासन अचल होता है। मोक्ष में रही आत्मा का पद अचल होता है । 15. अर्चना :- पूजा । 16. अचित्त :- जीव रहित वस्तु को अचित्त कहा जाता है । 17. अचिंत्य शक्ति :- जिसकी कल्पना भी न की जा सके ऐसी शक्ति को अचिंत्य शक्ति कहते हैं । :- 12 वें वैमानिक देवलोक का नाम । जो अपने स्वरूप 18. अच्युत से च्युत न होता हो, उसे भी अच्युत कहते हैं । www.kobatirth.org 19. अनशन :- आहार के इच्छापूर्वक त्याग को अनशन कहते हैं । 20. अचेलक :- वस्त्र का संपूर्ण त्याग ! तीर्थंकरों के शरीर पर जब तक देवदृष्य होता है, तब तक वे सचेलक कहलाते हैं और जब वरत्र चला जाता है, तब वे अचेलक कहलाते हैं । 21. अणिमा :- एक प्रकार की लब्धि, जिसके प्रभाव से अपनी काया अणु जितनी भी छोटी बनाई जा सकती है । व्रत । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 22. अणु :- पुद्गल का अविभाज्य अंश, जिसके केवली भी दो विभाग नहीं कर सकते ! 23. अणुव्रत :- महाव्रत की अपेक्षा श्रावक के पालन करने योग्य छोटे 24. अतिचार :- व्रत में लगनेवाले छोटे छोटे दोष अतिचार कहलाते हैं । 25. अतिजात पुत्र :- पिता की अपेक्षा जो बढ़कर हो, वह पुत्र अतिजात कहलाता है । 26. अतिथि :- साधु-साध्वी ! जो तिथि देखकर नहीं बल्कि हमेशा आराधना करते हों । 2 27. अतिथि संविभाग व्रत : श्रावक को पालन करने योग्य 12 वाँ व्रत । जिसमें पहले दिन श्रावक-श्राविका उपवास पूर्वक पौषध करके दूसरे दिन एकासना करते हैं और साधु साध्वीजी को वहोराई गई वस्तु को ही एकासने में वापरते हैं । - For Private and Personal Use Only

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