Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 77
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 629. भगवती सूत्र :- पांचवा अंग सूत्र ! जिसमें गौतमस्वामी द्वारा भगवान महावीर को पूछे गए 36000 प्रश्नों के जवाब है । 630. भाद्रपद :- एक महिने का नाम । 631. भस्मक रोग :- जिस रोग में खूब भूख लगती है । खूब खाने पर भी तृप्ति का अनुभव नहीं होता है। 632. मतिज्ञान :- मतिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से मन व इन्द्रियों की सहायता से होनेवाले ज्ञान को मतिज्ञान कहते हैं । 633. मनः पर्यवज्ञान :- जिस आत्म प्रत्यक्ष ज्ञान से ढाई द्वीप में रहे संज्ञी प्राणियों के मनोगत भावों को जाना जा सकता है, उसे मनःपर्यवज्ञान कहते हैं। 634. मनोगुप्ति :- आर्त व रौद्रध्यान से मन को रोकना और शुभध्यान में मन को जोड़ना, उसे मनोगुप्ति कहते हैं | 635. मनःपर्याप्ति :- छह प्रकार की पर्याप्तियों में अंतिम पर्याप्ति मनः पर्याप्ति है । संज्ञी पंचेन्द्रियपने के नवीन जन्म को धारण करते समय मनोवर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण कर उसे मन रूप में परिणत करने की शक्ति को मनःपर्याप्ति कहते हैं | 636. मनोयोग :- मन के द्वारा चिंतन आदि की प्रवृत्ति को मनोयोग कहते हैं। 637. मनोजय :- मन पर विजय प्राप्त करना । 638. ममत्व भाव :- बाह्य पौगलिक पदार्थों में अपनेपने के भाव को ममत्व भाव कहते हैं । ___639. महाविदेह :- जंबूद्वीप के मध्य में पूर्व - पश्चिम एक लाख योजन लंबा महाविदेह क्षेत्र आया हुआ है । धातकी खंड और पुष्करार्ध द्वीप में भी दो - दो महाविदेह आए हुए हैं । महाविदेह क्षेत्र में अवसर्पिणी काल के चौथे आरे जैसे भाव सदैव रहते हैं । 5 महाविदेह में जघन्य से 20 और उत्कृष्ट से 160 तीर्थंकर पैदा होते हैं। ===650 For Private and Personal Use Only

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