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सभी के बीच के 8 आकाश प्रदेशों को समभूतला पृथ्वी कहते हैं । 827. समय :- समय शब्द के अनेक अर्थ होते हैं1) काल Time 2) काल के अविभाज्य अंश को 'समय' कहते हैं । 3) आगम शास्त्र 4) अवसर
828. समयक्षेत्र :- ढाई द्वीप ! जहाँ मनुष्य का जन्म - मरण होता है । सूर्य-चंद्र की गति से जहाँ रात - दिन होते हैं, ऐसे ढाई द्वीप के क्षेत्र को समयक्षेत्र कहते हैं ।
829. समाधिमरण :- मृत्यु समय में किसी भी प्रकार का आर्त्त-रौद्र ध्यान न हो, समभाव में रहकर देह का त्याग करे, उसे समाधिमरण कहते हैं ।
830. समालोचना :- किये हुए पापों की गुरु समक्ष अच्छी तरह से आलोचना करना, कहना उसे समालोचना कहते हैं ।
831. समिति :- आत्महित के लिए सम्यग् प्रकार से प्रवृत्ति करना ! साधु - साध्वी के लिए अवश्य पालन करने योग्य 5 समिति हैं- 1) ईर्यासमिति 2) भाषासमिति 3) एषणा समिति 4) आदान भंडमत्त निक्षेपणा समिति 5) पारिष्टापनिका समिति ।
832. सयोगी केवली :- तेरहवें गुणस्थानक में रहे हुए - मन, वचन और काया के योगवाले केवली भगवंत को सयोगी केवली कहते हैं ।
833. सर्वविरति चारित्र :- हिंसा, झूठ आदि सभी प्रकार के पापों के मन, वचन और काया से सर्वथा त्याग को सर्वविरति चारित्र कहते हैं ।
834. सांशयिक मिथ्यात्व :- मिथ्यात्व के 5 प्रकारों में एक सांशयिक मिथ्यात्व है | जिन वचन में शंका - संशय करना - उसे सांशयिक मिथ्यात्व कहते हैं।
835. सागरोपम :- 10 कोटाकोटी पल्योपम को एक सागरोपम कहते हैं ।
836. साढपोरिसी :- सूर्योदय से सूर्यास्त तक के समय में चार प्रहर होते हैं । सूर्योदय से डेढ़ प्रहर बीतने पर साढ़पोरिसी पच्चक्खाण आता है ।
___837. समुद्घात :- सत्ता में रहे कर्मों को जल्दी से नष्ट करने के लिए जो प्रक्रिया की जाती है, उसे समुद्घात कहते हैं इसके 7 प्रकार हैं
1. वेदना समुद्घात 2. कषाय समुद्घात 3. मरण समुद्घात 4. वैक्रिय समुद्धात 5. तैजस समुद्घात 6. आहारक समुद्घात 7. केवली समुद्घात
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