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838. शाता गारव :- शारीरिक शाता में अत्यंत आसक्ति । सुखशीलपना, शरीर को थोड़ी भी तकलीफ न पड़े, ऐसी मनोवृत्ति ।
839. सादि-अनंत :- जिसका प्रारंभ है लेकिन जिसका अंत नहीं है, उसे सादि अनंत कहते हैं-जैसे क्षायिक सम्यक्त्व, एक जीव की अपेक्षा से मोक्ष ।
840. साधारण द्रव्य :- जिस द्रव्य (धन) का उपयोग सभी सात क्षेत्रों में हो सकता हो, वह साधारण द्रव्य कहलाता हैं |
841. साधारण वनस्पतिकाय :- जिसके एक शरीर में अनंत जीव हों उस वनस्पति को साधारण वनस्पतिकाय कहते है ।
842. सास्वादन :- आत्मविकास के चौदह गुणस्थानकों में दूसरे गुणस्थानक का नाम 'सास्वादन है ।'
अनंतानुबंधी कषाय के उदय के कारण सम्यक्त्व का वमन करते समय जो क्षणिक आस्वाद होता है, वह सास्वादन कहलाता है । इस गुणस्थानक का काल छह आवलिका मात्र है ।
843. सिद्धचक्र :- अरिहंत आदि नवपदों से बने हुए चक्र को सिद्धचक्र कहते हैं।
844. सिद्धशिला :- चौदह राजलोक के अग्र भाग पर आई हुई शिला, जिस पर सिद्धों का वास है । जो 45 लाख योजन लंबी-चौड़ी है तो बीच में
आठ योजन मोटी और क्रमशः घटती हुई किनारे पर मक्खी की पाँख जितनी पतली है । जो स्फटिक रत्नमय है, जिसका दूसरा नाम ईषद्प्राग्भारा है ।
845. सिद्धितप :- सिद्धि पद को देनेवाला एक प्रकार का तप, जिस तप में क्रमशः एक से आठ उपवास तक चढ़ने का होता है ।
846. सुकृतानुमोदना :- जगत् में हो रहे या हुए सुकृतों की अनुमोदना करना उसे सुकृतानुमोदना कहते हैं ।
847. शुक्ल पक्ष :- जिस पक्ष में प्रतिदिन चंद्रमा की कलाओं की वृद्धि होती है, उसे शुक्ल पक्ष कहते हैं ।
848. सुर पुष्पवृष्टि :- श्री अरिहंत परमात्मा के जो आठ प्रातिहार्य होते हैं, उनमें एक सुरपुष्पवृष्टि भी है । प्रभु के समवसरण में देवतागण घुटनों तक पंचवर्णी सुगंधित पुष्पों की वृष्टि करते हैं ।
____ 849. सुषम सुषम काल :- अवसर्पिणी काल के पहले आरे का नाम G860=
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