Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 79
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के नाम से प्रसिद्ध है । यह पर्वत 1 लाख योजन ऊँचा है और शुद्ध सोने से निर्मित है। ___651. मुख वस्त्रिका :- जीव-रक्षा के लिए अति उपयोगी साधन ! इसे मुहपत्ति भी कहते हैं । बोलते समय इसे मुख के पास रखने का होता है । इससे सूक्ष्म जीवों की रक्षा होती है । 652. मिथ्या श्रुत :- मिथ्यादृष्टि का सब श्रुत मिथ्याश्रुत कहलाता है । 653. मृत्युंजय तप :- मासक्षमण को मृत्युंजय तप भी कहते हैं । 654. मुमुक्षु :- संसार से मुक्त होने की जिसके हृदय में इच्छा रही हुई है, उसे मुमुक्ष कहते हैं । 655. मूलगुण :- साधु के पाँच महाव्रत और श्रावक के पाँच अणुव्रत मूलगुण कहलाते हैं। 656. मौन एकादशी :- मगसर सुदी 11 का पर्व । इस दिन भरतऐरावत की भूत-भविष्य और वर्तमान की चौबीसी के 150 कल्याणक हुए हैं इस कारण इस दिन की खूब महिमा है । अनेक आराधक इस दिन मौनपूर्वक उपवास करते हैं। 657. मोहाधीन जीव :- जो जीव मोह के अधीन होकर प्रवृत्ति करता है, वह मोहाधीन कहलाता है । 658. मैथुन :- पाँच मुख्य पापों में चौथा पाप मैथुन है । मैथुन अर्थात् स्त्री- पुरुष की सांसारिक भोग क्रिया । 659. माहेन्द्र देवलोक :- 12 वैमानिक देवलोक में चौथे देवलोक का नाम माहेन्द्र देवलोक है । ____660. मिथ्यात्व गुणस्थानक :- चौदह गुणस्थानकों में पहले गुणस्थानक का नाम मिथ्यात्व गुणस्थानक है । इस गुणस्थानक में रही आत्मा मिथ्यात्व से ग्रसित होती है। 661. मार्गानुसारिता :- जिनेश्वर भगवंत के द्वारा बताए हुए मार्ग का अनुसरण करना । 662. मार्दवता (मदता) :- हृदय में माया - कपट के अभाव को मार्दवता कहते है । हृदय की एकदम सरलता । न 670 For Private and Personal Use Only

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