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के नाम से प्रसिद्ध है । यह पर्वत 1 लाख योजन ऊँचा है और शुद्ध सोने से निर्मित है।
___651. मुख वस्त्रिका :- जीव-रक्षा के लिए अति उपयोगी साधन ! इसे मुहपत्ति भी कहते हैं । बोलते समय इसे मुख के पास रखने का होता है । इससे सूक्ष्म जीवों की रक्षा होती है ।
652. मिथ्या श्रुत :- मिथ्यादृष्टि का सब श्रुत मिथ्याश्रुत कहलाता है । 653. मृत्युंजय तप :- मासक्षमण को मृत्युंजय तप भी कहते हैं ।
654. मुमुक्षु :- संसार से मुक्त होने की जिसके हृदय में इच्छा रही हुई है, उसे मुमुक्ष कहते हैं ।
655. मूलगुण :- साधु के पाँच महाव्रत और श्रावक के पाँच अणुव्रत मूलगुण कहलाते हैं।
656. मौन एकादशी :- मगसर सुदी 11 का पर्व । इस दिन भरतऐरावत की भूत-भविष्य और वर्तमान की चौबीसी के 150 कल्याणक हुए हैं इस कारण इस दिन की खूब महिमा है । अनेक आराधक इस दिन मौनपूर्वक उपवास करते हैं।
657. मोहाधीन जीव :- जो जीव मोह के अधीन होकर प्रवृत्ति करता है, वह मोहाधीन कहलाता है ।
658. मैथुन :- पाँच मुख्य पापों में चौथा पाप मैथुन है । मैथुन अर्थात् स्त्री- पुरुष की सांसारिक भोग क्रिया ।
659. माहेन्द्र देवलोक :- 12 वैमानिक देवलोक में चौथे देवलोक का नाम माहेन्द्र देवलोक है ।
____660. मिथ्यात्व गुणस्थानक :- चौदह गुणस्थानकों में पहले गुणस्थानक का नाम मिथ्यात्व गुणस्थानक है । इस गुणस्थानक में रही आत्मा मिथ्यात्व से ग्रसित होती है।
661. मार्गानुसारिता :- जिनेश्वर भगवंत के द्वारा बताए हुए मार्ग का अनुसरण करना ।
662. मार्दवता (मदता) :- हृदय में माया - कपट के अभाव को मार्दवता कहते है । हृदय की एकदम सरलता ।
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