Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 82
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3) पंद्रहवें पापस्थानक का नाम रति - अरति है अर्थात् अनुकूल सुखसामग्री में होनेवाली मानसिक प्रीति को रति कहते हैं और प्रतिकूल सुखसामग्री में होनेवाली अप्रीति को अरति कहते हैं । 686. रम्यक् क्षेत्र :- रुक्मी और नीलवंत पर्वत के बीच आया हुआ युगलिक क्षेत्र । 687. रत्नाकर :- इसके तल भाग में रत्न होते हैं, इसलिए समुद्र को रत्नाकर कहते हैं । तीर्थंकर की माता को जो चौदह स्वप्न आते हैं, उसमें दसवें स्वप्न में रत्नाकर समुद्र दिखाई देता है। ___688. रस गारव :- स्वादिष्ट भोजन में तीव्र आसक्ति को रस गारव कहते हैं। ____689. रात्रि भोजन :- सूर्यास्त से सूर्योदय पूर्व के भोजन को रात्रिभोजन कहते हैं । जैन साधु के लिए जिंदगीभर रात्रिभोजन का त्याग होता है | सद्गृहस्थ के लिए त्याज्य 22 प्रकार के अभक्ष्य में रात्रिभोजन को भी अभक्ष्य माना गया है । श्रावक के 7 वें भोगोपभोग विरमण व्रत में रात्रिभोजन का त्याग कहा गया है। 690. रुचक प्रदेश :- आत्मा के असंख्य आत्मप्रदेश होते हैं । उनमें एकदम मध्यभाग में रहे हुए आठ आत्मप्रदेश रुचक प्रदेश कहलाते हैं, जिन पर कर्म का आवरण कभी नहीं आता है | लोकाकाश के मध्य, मेरुपर्वत के मध्य में आए आठ आकाशप्रदेशों को रुचक प्रदेश कहते हैं | 691. राजलोक :- संपूर्ण लोक 14 राजलोक प्रमाण है । एक राजलोक असंख्य योजन का होता है । कोई देव एक हजार मण के गोले को ऊपर से फेंके तो 6 मास 6 दिन 6 प्रहर 6 घड़ी व 6 पल में जितने अंतर को पार करे उसे एक राजलोक कहते हैं | ____692. रहस्य अभ्याख्यान :- किसी की गुप्त बात को प्रगट करना , उसे रहस्य अभ्याख्यान कहते हैं । 693. रुचक द्वीप :- जंबूद्वीप से चलने पर 13 वाँ द्वीप आता है । इस द्वीप पर चारों दिशाओं में चार जिन मंदिर हैं, जिनमें 124 - 124 जिन प्रतिमाएँ हैं । तीर्थंकर परमात्मा के जन्म के बाद सर्व प्रथम सूतिकर्म करनेवाली 56 दिक् कुमारिकाओं में से 40 दिक् कुमारिकाएँ इसी द्वीप में रहती हैं । 9700= For Private and Personal Use Only

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