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विजयों का विभाजन करनेवाले वक्षस्कार पर्वत और नदियाँ हैं । जंबूद्वीप के
महाविदेह में 16 वक्षस्कार पर्वत हैं ।
733. वायुकाय :- पवन के जीवों को वायुकाय कहते हैं ।
734. वाचना :- स्वाध्याय के 5 प्रकारों में सबसे पहला प्रकार वाचना है । वाचना अर्थात् गुरु के पास से विधिपूर्वक सूत्र ग्रहण करना ।
735. वामन संस्थान :- छह प्रकार के संस्थानों में 5 वें संस्थान का नाम वामन संस्थान है। इस संस्थान में हाथ, पैर, मस्तक और पेट ये चार अंग प्रमाणशः होते हैं, शेष अंग अव्यवस्थित होते हैं ।
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736. वालुका प्रभा :- अधोलोक में जो सात नरक हैं उनमें तीसरी नरक पृथ्वी का नाम वालुका प्रभा है ।
737. वासुदेव :- एक अवसर्पिणी काल में भरत - ऐरावत क्षेत्र में 9-9 वासुदेव होते हैं । ये वासुदेव तीन खंड के अधिपति होते हैं, इन्हें अर्द्धचक्री भी कहते हैं । प्रतिवासुदेव की मौत वासुदेव के हाथों से ही होती है ।
यद्यपि वे उत्तम पुरुष होते हैं, परंतु पूर्व भव में नियाणा करके आये हुए होने के कारण वे दीक्षा अंगीकार नहीं करते हैं और मरकर अवश्य नरक में जाते हैं ।
738. विकलेन्द्रिय :- बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों का संयुक्त नाम विकलेन्द्रिय है । ये जीव मन रहित होते हैं ।
है ।
739. विगई :- जिसको खाने से मन में विकारभाव पैदा होता है, उसे विगई कहते हैं । यह दो प्रकार की है- भक्ष्य विगई और अभक्ष्य विगई ।
दूध, दही, घी, तैल, गुड़ और कड़ाह विगई, भक्ष्य विगई कहलाती
मद्य, मांस, मधु और मक्खन ये चार अभक्ष्य विगई कहलाती हैं । 740. विद्याचारण मुनि :- विद्या के बल से आकाश में उड़नेवाले मुनि विद्याचारण मुनि कहलाते हैं ।
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741. विद्याप्रवाद पूर्व :- चौदह पूर्वों में से एक पूर्व का नाम विद्याप्रवाद पूर्व है । इस पूर्व में अनेक प्रकार की विद्याओं का निर्देश किया गया है । 742. विनय :- विनय अर्थात् नम्रता । गुणवान व ज्येष्ठ और रत्नाधिक
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