Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 87
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सभी श्रोताओं को अपनी अपनी भाषा में समझ में आ जाता है । तीर्थंकर परमात्मा के जो चार अतिशय कहे गए हैं, उनमें एक वचनातिशय भी है । 726. वज्रऋषभ नाराच संघयण :- संघयण अर्थात् हड्डियों की रचना | इस रचना में हड्डियों का मर्कटबंध, पट्टा और कीली तीनों होते हैं । मोक्ष में जाने के लिए वज्रऋषभनाराच संघयण जरूरी है । 727. वंदन आवश्यक :- साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका रूप चतुर्विध संघ के लिए अवश्य करने योग्य जो सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, गुरुवंदन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और पच्चक्खाण आदि छह आवश्यक हैं, उसमें गुरुवंदन यह तीसरा आवश्यक है । मोक्षमार्गदर्शक उपकारी गुरु को वंदन करना, यह भी अवश्य कर्तव्य है । . 728. वार्षिक दान :- तारक तीर्थंकर परमात्मा दीक्षा अंगीकार करने के पहले एक वर्ष तक नियमित दान देते हैं । एक वर्ष तक दान देने के कारण उसे वार्षिक दान कहते हैं । तारक परमात्मा एक वर्ष दरम्यान 388 करोड़ 80 लाख सुवर्ण मुद्राओं का दान देते हैं । इस दान द्वारा परमात्मा जगत् के द्रव्य दारिद्र्य का नाश करते हैं । वर्तमान समय में दीक्षा लेनेवाला वार्षिक दान के अनुकरण स्वरूप वर्षीदान देता है । 729. वर्धमान तप :- जो तप क्रमशः बढ़ता जाता है, जिसमें पहले एक आयंबिल एक उपवास, फिर दो आयंबिल एक उपवास, इस प्रकार क्रमशः 100 आयंबिल और एक उपवास किया जाता है । इस तप में कुल 5050 आयंबिल और 100 उपवास होते हैं । 730. वर्धमान स्वामी :- इस अवसर्पिणी काल में हुए 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का ही दूसरा नाम वर्धमान स्वामी है। प्रभु के जन्म के बाद हर तरह से धन - धान्य व परिवार में वृद्धि होने से उनका यथार्थनाम वर्धमान रखा जाता है । 731. वर्षधर पर्वत : भरत आदि 7 क्षेत्रों की सीमा को निर्धारित करनेवाले ये पर्वत वर्षधर पर्वत कहलाते हैं । इनके नाम हैं- हिमवंत, महाहिमवंत, निषध, नीलवंत, रुक्मि और शिखरी ! 732. वक्षस्कार पर्वत :- महाविदेह क्षेत्र में जो 32 विजय हैं, उन 32 75 For Private and Personal Use Only

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