Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 92
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 773. शक्यप्रयत्न :- आराधना आदि के लिए अपनी शक्ति के अनुसार जो प्रयत्न किया जाता है, उसे शक्यप्रयत्न कहते हैं । 774. शतक :- जिस सूत्र में 100 गाथाएँ होती हैं, उसे शतक कहते हैं | जैसे-वैराग्यशतक, समाधिशतक, योगशतक, इन्द्रियपराजयशतक आदि । 775. शताब्दी महोत्सव :- जिन मंदिर आदि की प्रतिष्ठा के 100 वर्ष पूर्ण होने के बाद जो महोत्सव होता है, उसे शताब्दी महोत्सव कहते हैं । 776. शतावधानी :- एक साथ 100 बातों पर अपना ध्यान केन्द्रितकर उन्हें याद रख सके और उसी क्रम से दोहरा दे उसे शतावधानी कहते हैं | ___777. शब्दवेधी :- सिर्फ शब्द सुनकर बाण द्वारा निशान ताकनेवाला शब्दवेधी कहलाता है। 778. शय्यातर :- जिस मकान में साधु - साध्वी ने रात्रि में विश्राम किया हो, उस मकान का मालिक शय्यातर कहलाता है । __शय्या अर्थात् बसती के दान द्वारा संसार सागर से पार उतरनेवाला शय्यातर कहलाता है | - 779. शय्या परिषह जय :- साधु-साध्वी को विहार दरम्यान ठहरने के लिए ऊँची-नीची जमीन प्राप्त हो, ठंडी - गर्मीवाली जगह हो, आवास स्थान कष्टदायी हो, तो भी मन में आर्त - रौद्र ध्यान नहीं करना, उसे शय्या परिषह जय कहते हैं। 780. शरीर पर्याप्ति :- जिस शक्ति विशेष से जीव पुद्गलों को ग्रहणकर उन्हें शरीर के रूप में बनाता है, उस शक्ति विशेष को शरीर पर्याप्ति कहते हैं। 781. शलाका पुरुष :- 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 वासुदेव, 9 प्रतिवासुदेव तथा 9 बलदेव इन 63 आदि उत्तम पुरुषों को शलाका पुरुष कहते हैं। 782. शाश्वती प्रतिमा :- जो प्रतिमाएँ अनादिकाल से हैं और भविष्य में भी अनंतकाल तक रहनेवाली हों, वे शाश्वती प्रतिमाएँ कहलाती हैं । G800 - For Private and Personal Use Only

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