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676. यथाप्रवृत्तिकरण :- आयुष्य को छोड़कर शेष सात कर्मों की स्थिति एक कोड़ाकोड़ी सागरोपम के अंदर हो जाय, उसे यथाप्रवृत्तिकरण कहते हैं | समकित की प्राप्ति के पूर्व यथाप्रवृत्तिकरण अनिवार्य है।
677. युगलिक मनुष्य :- युगलिक क्षेत्र में युगल - (पुत्र पुत्री) के रूप में पैदा होनेवाले मनुष्य को युगलिक मनुष्य कहते हैं । इनका आयुष्य असंख्य वर्षों का होता है । भद्रिक परिणामी होने के कारण वे मरकर देवगति को ही प्राप्त करते हैं।
678. योगक्षेम :- अप्राप्त वस्तु को प्राप्त कराना, उसे योग कहते हैं और प्राप्त वस्तु का रक्षण करन उसे क्षेम कहते हैं।
___679. योनि :- जीवों के उत्पत्ति स्थान को योनि कहते हैं । जीवों की उत्पत्ति की कुल 84 लाख योनियाँ हैं।
680. यति :- साधु, मुनि आदि ।
681. यतिधर्म :- 1) क्षमा 2) नम्रता 3) सरलता 4) निर्लोभता 5) तप 6) संयम 7) सत्य 8) शौच 9) अकिंचनता तथा 10) ब्रह्मचर्य - ये 10 यतिधर्म कहलाते हैं। ___682. योगनिरोध :- 14 वें गुणस्थानक में आत्मा मन - वचन और काया के योगों का निरोध करती है । योगनिरोध के बाद आत्मा अयोगी बनती है |
683. रक्तकंबला शिला :- मेरुपर्वत पर पांडुकवन में आई हुई रक्तकंबला शिला, जिस पर ऐरावत क्षेत्र में पैदा हुए तीर्थंकरों का जन्माभिषेक होता है ।
684. रजोहरण :- साधु का मुख्य उपकरण, जिसे ओघा भी कहते हैं । आत्मा पर लगी हुई कर्म रूपी रज का हरण करने के कारण रजोहरण कहलाता है।
685. रति :- इसके अनेक अर्थ हैं1) कामदेव की पत्नी का नाम रति है। 2) चारित्र मोहनीय कषाय में नव नो कषाय में रति आता है ।
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