Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 38
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 282. खादिम :- चार प्रकार के आहार में से एक प्रकार का आहार । सूखा मेवा आदि खादिम कहलाते हैं । 283. खातमुहूर्त :- जिनमंदिर के निर्माण के प्रारंभ में भूमि को खोदने की जो विधि की जाती है, भूमिखनन की उस क्रिया को खातमुहूर्त या खननमुहूर्त कहते हैं। 284. खगोल :-आकाश-मंडल । 285. गुरु :- अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करनेवाले और मोक्षमार्ग की राह बतानेवाले गुरु कहलाते हैं | 286. गुणानुवाद :- अन्य व्यक्ति में रहे हुए गुणों का आदरपूर्वक कथन करना, उसे गुणानुवाद कहते हैं । 287. गीतार्थ :- शास्त्र के परमार्थ को जाननेवाले | 288. गुरुकुलवास :- उपकारी गुरु के परिवार के साथ रहना, उसे गुरुकुलवास कहते हैं। 289. गणधर :- तीर्थंकर परमात्मा के वरद हस्तों से सर्वप्रथम दीक्षित बने शिष्य । जिनकी दीक्षा के बाद ही तीर्थंकर परमात्मा तीर्थ की स्थापना करते हैं । ये गणधर बीजबुद्धि के निधान होते हैं जो अन्तर्मुहूर्त में द्वादशांगी की रचना कर देते हैं। 290. गणधरवाद :- भगवान महावीर के ग्यारह गणधर । दीक्षा लेने के पूर्व इन्द्रभूति आदि के मन में आत्मा के अस्तित्व आदि विषयक जो शंकाएँ थीं, उनका समाधान भगवान महावीर ने किया था | गणधरों की शंकाओं का निवारण संबंधी जो ग्रंथ, उसी को गणधरवाद कहते हैं । 291. गणिपिटक :- गणधरों से रचित द्वादशांगी को गणिपिटक कहते G26 For Private and Personal Use Only

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