Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 74
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 5-8 भवनपति,व्यंतर, ज्योतिष और वैमानिक देवियाँ । 9-12 साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका । 602. बालतप :- अज्ञानता से विवेकरहित जो तप किया जाता है, वह बालतप कहलाता है । पंचाग्नि तप, अग्नि-प्रवेश, पर्वत पर से झंपापात आदि बालतप कहलाते हैं। 603. बाह्यतप :- जो तप बाहर से दिखाई देता है । जिस तप का प्रभाव बाह्यशरीर पर पड़ता है, वह बाह्यतप कहलाता है । जो तप अजैनों में भी होता है। बाह्यतप के छह भेद हैं 1) अनशन :- अशन, पान, खादिम और स्वादिम का अल्पकाल अथवा दीर्घकाल के लिए त्याग करना । जैसे - नवकारसी, पोरिसी, आयंबिल, एकासना, उपवास आदि । 2) ऊणोदरी :- भूख से कम भोजन करना । 3) वृत्तिसंक्षेप :- खाद्य पदार्थों की संख्या निर्धारित करना । 4) रसत्याग :- छह विगई में से एक - दो अथवा सभी का त्याग करना । 5) कायक्लेश :- लोच आदि कष्ट सहन करना । 6) संलीनता :- अंगोपांग को संकुचित कर बैठना । 604. बेइन्द्रिय जीव :- स्पर्शनेन्द्रिय और रसनेन्द्रिय रूप दो इन्द्रियों को धारण करनेवाले जीवों को बेइन्द्रिय जीव कहते हैं । जैसे - शंख , कौड़ा, कौड़ी आदि । 605. बक ध्यान :- बगले की तरह ध्यान करना । बगला एकाग्रचित्त होता हैं, परंतु सिर्फ मच्छली को पकड़ने के लिए । ___606. बाहुबली :- ऋषभदेव भगवान के दूसरे पुत्र का नाम | भरत के छोटेभाई। 607. बाहुयुद्ध :- दो हाथों से जो युद्ध किया जाता है, वह बाहुयुद्ध कहलाता है । 608. बुभुक्षा :- खाने की इच्छा । 620= For Private and Personal Use Only

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