Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 371. टीका :- मूल ग्रंथ पर संस्कृत भाषा में जो विवेचन किया जाता है, उसे टीका कहते हैं । टीका का एक अर्थ निंदा भी होता है । 372. टीकाकार :- टीका की रचना करनेवाले को टीकाकार कहते हैं। 373. तत्त्व :- किसी भी पदार्थ के सार भाग को तत्त्व कहा जाता है । जैन दर्शन जीव आदि 9 पदार्थों को तत्त्व कहता है | 1) जीव 2) अजीव 3) पुण्य 4) पाप 5) आस्रव 6) संवर 7) निर्जरा 8) बंध 9) मोक्ष । 374. तत्त्वरुचि :- वीतराग प्ररूपित तत्त्वों को जानने की इच्छा को तत्त्वरुचि कहते हैं। ___375. तत्त्व संवेदन :- वस्तु के यथार्थ स्वरूप की सम्यग् अनुभूति को तत्त्व संवेदन कहते हैं । ज्ञानावरणीय और मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से पैदा होनेवाला यह तात्त्विक ज्ञान है । 376. तत्त्वार्थ सूत्र :- वाचकवर्य श्री उमास्वाति जी के द्वारा विरचित एक अद्भुत ग्रंथ, जिसमें जैन दर्शन के सभी पदार्थों का समावेश हो जाता 377. तद्भव मोक्षगामी :- उसी भव में मोक्ष में जानेवाला । 378. तनुवात :- अत्यंत ही पतला वायु ! 379. तपाचार :- साधु और श्रावकों को पालन करने योग्य पाँच आचारों में से चौथा आचार ! इसके 12 भेद हैं | 1) अनशन 2) ऊणोदरी 3) वृत्तिसंक्षेप 4) रसत्याग 5) कायक्लेश 6) संलीनता 7) प्रायश्चित्त 8) विनय 9) वैयावच्च 10) स्वाध्याय 11) कायोत्सर्ग और 12) ध्यान । 380. तीर्थ :- जिसके आलंबन से भवसागर को पार किया जा सकता है, उसे तीर्थ कहते हैं । ये दो प्रकार के हैं 1) स्थावर तीर्थ और 2) जंगम तीर्थ ! 63610 For Private and Personal Use Only

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