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350. जीवविचार :- चार प्रकरणों में सबसे पहला प्रकरण ! इस प्रकरण में जीव के स्वरूप का विचार किया गया है ।
हैं ।
351. जैन :- राग-द्वेष रूपी आत्मशत्रुओं को जीतनेवाले जिन कहलाते हैं और उनके द्वारा बताए हुए मार्ग का अनुसरण करनेवाला जैन कहलाता है । 352. जैनधर्म :- वीतराग परमात्मा के द्वारा बताए हुए धर्म को जैन धर्म कहते हैं ।
353. जंगम तीर्थ :- चलते-फिरते साधु-साध्वी को जंगमतीर्थ कहते
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354. जंघाचारण मुनि :- जिस विद्या विशेष से जंघा के द्वारा आकाश में उड़ने का बल प्राप्त होता है, ऐसी लब्धिवाले मुनि को जंघाचारण मुनि कहते हैं ।
है ।
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355. जलकमलवत् निर्लेप :- जिसप्रकार कमल जल में पैदा होता है, परंतु जल से अलिप्त होता है, उसी प्रकार से संसार में पैदा होने पर भी जो संसार से सर्वथा अलिप्त रहते हैं वे साधक जलकमलवत् निर्लेप कहलाते हैं । 356. जगद् गुरु :- संपूर्ण जगत् के गुरु-तीर्थंकर परमात्मा ।
357. जठराग्नि :- पेट में रही आग जिससे खाया हुआ भोजन पचता
करना ।
358. जन्मान्तर :- इस जन्म के बाद का अन्य जन्म ।
359. जीर्णोद्धार :- जीर्ण हो चूके मंदिर का पुनः उद्धार करनानिर्माण करना ।
360. जुगुप्सा :- किसी के मलिन वस्त्र आदि को देखकर घृणा
361. ज्ञाताधर्मकथा :- बारह अंगों में छठे अंग का नाम ज्ञाता धर्म कथा है । जिसमें करोड़ों कथाएँ थीं ।
362. ज्ञातृपुत्र :- भगवान महावीर ! ज्ञातृ कुल में उत्पन्न होने के कारण भगवान महावीर का एक नाम ज्ञातपुत्र भी है ।
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363. ज्ञानाचार :- पाँच प्रकार के आचारों में सबसे पहला आचार ज्ञानाचार है । इसके आठ भेद हैं
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