Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 55
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जब 441. धर्म ध्यान :- आर्त और रौद्र ध्यान अशुभ ध्यान कहलाते हैं, कि धर्मध्यान शुभ कहलाता है । इस धर्मध्यान के चार भेद हैं- 1) आज्ञा विचय 2) विपाक विचय 3) अपाय विचय 4 ) संस्थान विचय । 442. धर्मास्तिकाय :- जीव और जड़ पदार्थ को गति में सहायता करनेवाला द्रव्य धर्मास्तिकाय है । यह द्रव्य चौदह राजलोक में व्याप्त है, अखंड है और एक है । 443. ध्याता :- जो ध्यान करता है, उसे ध्याता कहते हैं | 444. ध्येय :- जिसका ध्यान किया जाता है, उसे ध्येय कहा जाता है। 445. धर्मकथानुयोग : चार प्रकार के अनुयोग में एक अनुयोग धर्म कथानुयोग है । इसमें महापुरुषों के जीवनचरित्र आते हैं । 446. धर्मदुर्लभ भावना :- बारह प्रकार की भावनाओं में एक भावना धर्मदुर्लभ भावना है । इस भावना के अन्तर्गत संसार में परिभ्रमण कर रही आत्मा को सद्धर्म की प्राप्ति कितनी दुर्लभ है, इसका विचार व चिंतन किया जाता है । 447. धर्मनाथ :- इस अवसर्पिणी काल में भरत क्षेत्र में हुए 15 वें तीर्थंकर परमात्मा का नाम धर्मनाथ है । 448. धर्मक्षमा : 'क्षमा रखना यह आत्मा का धर्म है' ऐसा मानकर प्रतिकूल संयोगों में भी क्षमा भाव को धारण करना, उसे धर्मक्षमा कहते हैं । 449. धातकी खंड :- मध्यलोक में ढाई द्वीप के अंदर आए हुए एक द्वीप का नाम धातकी खंड है। यह द्वीप चार लाख योजन विस्तारवाला है । इस द्वीप में दो भरत क्षेत्र, दो ऐरावत क्षेत्र और दो महाविदेह क्षेत्र आए हुए हैं । 450. धूमप्रभा नरक :- धूएं के समान अंधकार से व्याप्त पाँचवीं नरक का नाम धूमप्रभा नरक है । 451. धर्मकथा : धर्म संबंधी तत्वचर्चा ! For Private and Personal Use Only 43

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