Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 65
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 525. पर्याप्ति :- जीव की शक्ति विशेष को पर्याप्ति कहते हैं | नए जन्म को धारण करते समय, देह के निर्माण के लिए जीव वातावरण में से पुद्गलों को ग्रहण कर उन्हें आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन के रूप में परिणत करता है। आहार आदि कुल छह पर्याप्तियाँ होती हैं । 526. पर्याय :- द्रव्य की बदलती हुई अवस्था को पर्याय कहते हैं । जैसे-बाल्यावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था आदि मनुष्य के पर्याय हैं । 527. पर्यायार्थिक नय :- वस्तु के पर्याय विशेष को लक्ष्य करके पदार्थ का निरूपण करनेवाला नय पर्यायार्थिक नय कहलाता है । 1) ऋजुसूत्र 2) शब्दनय 3) समभिरूढ़ और 4) एवंभूत नय - ये चार पर्यायार्थिक नय कहलाते हैं । 528. पर्याय स्थविर :- 20 वर्ष से अधिक पर्यायवाले मुनि को पर्याय स्थविर कहते हैं । 529. पर्युषण महापर्व : जैन धर्म का सबसे बड़ा पर्व पर्युषण महापर्व है जो आठ दिन मनाया जाता है । इसे पर्वाधिराज भी कहते हैं । इस पर्व के माध्यम से जगत् में रहे सभी अपराधों की क्षमायाचना की जाती है । 530. पंचमीगति :- मोक्ष को पंचमी गति कहते हैं । चारगति देव, मनुष्य तिर्यंच व नारक संसार में हैं । 531. पंचकल्याणक :- तारक तीर्थंकर परमात्मा के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और मोक्ष ये पाँच कल्याणक कहलाते है । परमात्मा के कल्याणक के ये दिन जगत् के सभी जीवों के भी कल्याण में कारणभूत बनते हैं । 532. पंचदिव्य : तीर्थंकर परमात्मा का जब पारणा होता है, देवतागण पंचदिव्य प्रगट करते हैं जो इसप्रकार हैं तब 1) जघन्य से साढ़े बारह लाख व उत्कृष्ट से साढ़े बारह करोड सोना मोहर की वृष्टि होती है । 2) सुगंधित जल की वृष्टि होती है । 3) सुगंधित पुष्पों की वृष्टि होती है । 4) आकाश में देव दुंदुभि का नाद होता है । 5) देवता 'अहो दानं अहो दानं की घोषणा करते हैं ।' For Private and Personal Use Only 53

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