Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 63
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'प' 508. पक्ष :- इस शब्द के अनेक अर्थ होते हैं । 1) समान विचारधारावाले संगठन को भी पक्ष कहा जाता है । 2) जिस स्थान में साध्य के अस्तित्व का निश्चय किया जाता है, उसे भी पक्ष कहते हैं । 3) हिंदु व जैन पंचांग के अनुसार एक मास के भी दो पक्ष होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष । 509. पाक्षिक प्रतिक्रमण :- पंद्रह दिन के पापों के प्रायश्चित्त रूप निश्चित तिथि को जो प्रतिक्रमण किया जाता है, उसे पाक्षिक प्रतिक्रमण कहते हैं । 510. पच्चक्खाण :- पच्चक्खाण अर्थात् प्रतिज्ञा । दिन में या रात्रि में आहार आदि का जो त्याग किया जाता है उसे नवकारसी आदि का पच्चक्खाण कहते हैं । 511. पडिलेहण :- साधु-साध्वी और पौषध में रहे हुए श्रावक श्राविका सुबह - शाम अपने वस्त्र - पात्र आदि उपकरणों के उपभोग के लिए जीवरक्षा हेतु जो निरीक्षण करते हैं, उसे पडिलेहण कहते हैं । 512. पद्मासन :- योग के एक विशिष्ट आसन को पद्मासन कहते हैं । पाँव के ऊपर पाँव चढ़ाकर रीढ़ की हड्डी को सीधाकर बैठा जाता है । 513. पदस्थ ध्यान :- मंत्राक्षर आदि पदों का आलंबन लेकर जो ध्यान किया जाता है, उसे पदस्थ ध्यान कहते हैं । 514. पदस्थ अवस्था :- तीर्थंकर परमात्मा की तीन अवस्थाएँ होती हैं1) पिंडस्थ 2) पदस्थ 3) रूपस्थ । केवलज्ञान की प्राप्ति के बाद अष्टमहाप्रातिहार्य आदि शोभायुक्त परमात्मा की जो अवस्था होती है, उसे पदस्थ अवस्था कहते हैं । 515. पिंडस्थ अवस्था :- पिंड अर्थात् देह । तीर्थंकर परमात्मा की देह संबंधी अवस्था को पिंडस्थ अवस्था कहते हैं। इसके तीन भेद हैं- 1) जन्मावस्था 2) राज्यावस्था 3) श्रमणावस्था । 516. पदानुसारी लब्धि : किसी भी श्लोक के एक पद को जानने से संपूर्ण श्लोक का ज्ञान हो जाता है, उसे पदानुसारी लब्धि कहते हैं । For Private and Personal Use Only 51

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