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जैसे - किसी ने पूछा, "यह रास्ता कहाँ जाता है ?' जवाब मिला, "मुंबई जाता है।"
) यद्यपि रास्ता तो अपनी जगह पर ही स्थिर है, उस रास्ते पर चलनेवाला व्यक्ति मुंबई जाता है । परंतु यह नय 'यह रास्ता मुंबई जाता है'इस वाक्य को भी सत्य मानकर स्वीकार करता है ।
2) आज महावीर जन्म कल्याणक है ।' यद्यपि महावीर प्रभु का जन्म आज से 2600 से भी अधिक वर्ष पूर्व हुआ है, फिर भी यह नय भूत का वर्तमान में आरोपण करने पर भी उसे सत्य रूप में मानता है ।
488. न्यग्रोध परिमंडल :- मनुष्य शरीर की बाह्य रचना विशेष को संस्थान कहते हैं । संस्थान छह प्रकार के होते हैं | दूसरे संस्थान का नाम न्यग्रोध परिमंडल है । इस संस्थान में नाभि के ऊपर के अवयव प्रमाण युक्त होते हैं जब कि नीचे के अवयव प्रमाण रहित होते हैं ।
489. नैवेद्य पूजा :- तीर्थंकर परमात्मा की जो अष्ट प्रकारी पूजा होती है, उसमें सातवीं पूजा नैवेद्य पूजा है । इस पूजा में प्रभु के आगे चार प्रकार का आहार रखा जाता है ।
490. नव ग्रैवेयक :- पाँच अनुत्तर से नीचे और बारह वैमानिक देवलोक के ऊपर नवग्रैवेयक के देवविमान आए हुए हैं । ये देव भी कल्पातीत कहलाते हैं। अभव्य की आत्मा अपने निरतिचार द्रव्य चारित्र के फलस्वरूप नव ग्रैवेयक तक जा सकती है ।
___491. नपुंसक वेद :- स्त्री और पुरुष दोनों के भोग की इच्छा को नपुंसक वेद कहते हैं । नपुंसक में स्त्री और पुरुष के मिश्र लक्षण होते हैं ।
492. नित्थार पारगा होह :- जैन साधु किसी भक्त पर वासक्षेप डालते समय, आशीर्वाद डालते समय 'नित्थार पारगा होह' बोलते हैं | इसका अर्थ होता है - तुम इस संसार से जल्दी पार उतर जाओ । __493. नित्य :- जो वस्तु हमेशा रहनेवाली हो उसे नित्य कहते हैं |
494. नित्यानित्य :- प्रत्येक वस्तु द्रव्य से नित्य है और पर्याय से अनित्य है । दोनों भावों की एक साथ विवक्षा करनी हो तब नित्यानित्य कहा जाता है।
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