Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 69
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 555. पुष्कलावती विजय : जंबुद्वीप के पूर्व महाविदेह की 8वीं विजय का नाम पुष्कलावती विजय है जहाँ पर सीमंधरस्वामी भगवंत विद्यमान हैं । 556. पूर्व :- इसके अनेक अर्थ हैं 1) सूर्य उदय होनेवाली दिशा को पूर्व दिशा कहते हैं । 2) पूर्व का अर्थ पहला भी होता है, जैसे- पूर्वाह्नकाल । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3) 84 लाख को 84 लाख से गुणने पर जो संख्या आती है, उसे भी पूर्व कहते हैं । 4) द्वादशांगी के बारहवें अंग दृष्टिवाद में 14 पूर्व आते हैं । 557. पूर्वधर महर्षि :- पूर्व में रहे श्रुत के ज्ञान को धारण करनेवाले महर्षि को पूर्वधर महर्षि कहते हैं । 558. पूर्वांग :- 84 लाख वर्ष के समय को पूर्वांग कहते हैं । I 559. प्रवचन :- प्रकृष्ट वचन को प्रवचन कहते हैं । प्रभु के वचन श्रेष्ठ होते हैं, अतः प्रभु के उपदेश को प्रवचन भी कहते हैं । 560. प्रवचन माता :- साधु-साध्वी के लिए नियमित रूप से पालन करने योग्य जो पाँच समिति और तीन गुप्तियाँ हैं, उनके लिए एक संयुक्तशब्द प्रवचनमाता है । इन प्रवचन माताओं के पालन से आत्मा कर्म के बंधन से मुक्त होकर शाश्वत अजरामर मोक्ष पद प्राप्त करती है । 561. प्रवचन वात्सल्य :- चतुर्विध संघ और साधर्मिक के प्रति जो निःस्वार्थ प्रेम होता है, उसे प्रवचन वात्सल्य कहते हैं । 562. प्रवचन प्रभावना :- आचार्य भगवंत आदि द्वारा वीतराग प्रभु के उपदेशों के प्रचार- प्रसार को प्रभावना कहते हैं । अजैनों के दिल में भी जैन धर्म के प्रति अपूर्व आकर्षण भाव पैदा हो ऐसी उपदेश पद्धति को प्रवचन प्रभावना कहते हैं । 563. प्राणातिपात :- प्रमाद के योग से अन्यजीवों के मन, वचन और काया को पीड़ा पहुँचाना, उसे प्राणातिपात कहते हैं, उसे हिंसा भी कहते हैं । 564. पैशुन्य :- 18 प्रकार के पापस्थानकों में 15 वें नंबर का नाम पैशुन्य है । पैशुन्य अर्थात् चाड़ीचुगली खाना इधर की बात उधर करना । 57 - For Private and Personal Use Only

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