Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 59
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 469. निर्यामणा :- अंतिम समय - मौत के पूर्व , समाधि भाव की प्राप्ति के लिए जो उपदेश आदि सुनाया जाता है, उसे निर्यामणा कहते हैं । 470. निर्यामक :- जो निर्यामणा कराता हो, उसे निर्यामक कहते हैं । 471निर्वेद :- पाँच इन्द्रियों के सांसारिक सुख में तीव्र अरुचि भाव को निर्वेद भाव कहते हैं । निर्वेद अर्थात् सांसारिक सुख में अरुचि भाव | 472. निश्चय नय :- वस्तु के मूल स्वरूप को ग्रहण करनेवाले नय को निश्चयनय कहते हैं। ___473. नीवी :- छ विगई के त्याग रहित भोजन । उपधान व साधु - साधु के योगोद्वहन दरम्यान जो नीवी आती है, उसमें कच्ची छ विगई का त्याग होता है, परंतु विगई से बने नीवियाते की छूट होती है । ___474. नंदनवन :- यह वन मेरुपर्वत पर आया हुआ है | समभूतला पृथ्वी से 500 योजन ऊपर जाने पर यह वन आता है । देवता आकर यहाँ अनेक प्रकार की क्रीड़ाएँ करते हैं । यह वन पर्वत के चारों ओर 500 योजन विस्तारवाला है। 475. नंदावर्त :- अष्ट मंगल में एक मंगलकारी आकृति नंदावर्त की भी है । इसके केन्द्र में स्वस्तिक की आकृति होती है। 476. नंदीश्वर द्वीप :- जंबूद्वीप से क्रमशः आगे बढ़ने पर वर्तुलाकार आठवाँ नंदीश्वर द्वीप आता है । इस द्वीप पर चारों दिशाओं में 13-13 जिनमंदिर हैं । ये मंदिर व प्रतिमाएँ शाश्वत हैं । पर्युषण व नवपद ओली के पर्वदिनों में देवतागण आकर परमात्मा की भक्ति करते हैं | कई विद्याधर व लब्धिधारी मुनि भी इस तीर्थ की यात्रा के लिए आते हैं । 477. नाभिराजा :- ऋषभदेव प्रभु के पिता नाभिराजा । 478. नामकर्म :- आत्मा पर लगे हुए आठ प्रकार के कर्मों में छठे कर्म का नाम नामकर्म है । शरीर की रचना आदि का कार्य यही कर्म करता है । यह अघाति कर्म है । इस कर्म के उत्तरभेद 103 हैं । 479. नामनिक्षेप :- किसी भी वस्तु में नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव. ये चार निक्षेप होते हैं । इनके द्वारा वस्तु का स्पष्ट बोध होता है । किसी भी वस्तु के नाम को ' नामनिक्षेप ' कहते हैं। -647 For Private and Personal Use Only

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