Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 56
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 452. नवकार मंत्र :- जैनों का सबसे बड़ा मंत्र नवकार मंत्र है । इसमें किसी व्यक्ति का नामनिर्देश नहीं है । यह महामंत्र गुणप्रधान है | चौदह पूर्वो का सार है। ___453. नवपद :- अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, सम्यग् दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप ये नवपद कहलाते हैं । सिद्धचक्र के प्रथम वलय में ये ही नवपद आते हैं । __454. नवपद ओली :- चैत्र और आसो मास में सुद सप्तमी से पूर्णिमा तक के नौ दिनों में आयंबिल तप पूर्वक नवपद की भक्ति की जाती है, उसे नवपद ओली कहते हैं । 455. निद्रा :- दर्शनावरणीय कर्म के उदय के कारण जीव को नींद आती है । इस निद्रा के भी 5 प्रकार हैं 1) निद्रा :- सामान्य आवाज होने पर जो नींद में से जग जाता है, उसे निद्रा कहते हैं। 2) निद्रा निद्रा :- जिसको जगाने के लिए थोड़ी मेहनत करनी पड़ती है ! बार-बार आवाज करने के बाद जो जगता है, उसे निद्रा-निद्रा कहते हैं। 3) प्रचला :- चलते चलते ही जिसे नींद आती है, उसे प्रचला कहते 4) प्रचला-प्रचला :- बैठे-बैठे या खड़े-खड़े ही जिसे नींद आती है, उसे प्रचला - प्रचला कहते हैं । 5) थीणद्धि :- इस निद्रा के उदयवाला जीव, दिन में सोचा हुआ कार्य, रात्रि में नींद में ही कर लेता है, फिर भी उसे उसका ख्याल नहीं होता है, उसे थीणद्धि निद्रा कहते हैं । इस निद्रा के उदयवाला जीव अवश्य नरकगामी होता है। 456. निगोद :- साधारण वनस्पतिकाय के जीव ! जिसके एक शरीर में अनंत जीव होते हैं । अपने एक श्वासोच्छ्वास जितने काल में निगोद जीव के 17% भव हो जाते हैं । G44 For Private and Personal Use Only

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