Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 51
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 399. थीणद्धि निद्रा :- पाँच प्रकार की निद्राओं में 5 वें प्रकार की निद्रा को थीणद्धि निद्रा कहते हैं । इस निद्रा के उदयवाला जीव दिन में सोचा हुआ कार्य नींद में ही आकर कर लेता है, परंतु उसे कुछ भी पता नहीं चलता है । इस निद्रा के उदयवाले प्रथम संघयणवाले को वासुदेव से आधा बल प्राप्त हो जाता है। 400. दर्शन :- दर्शन शब्द के अनेक अर्थ होते हैं । 1) जिसके द्वारा जिनकथित वचनों पर श्रद्धा पैदा होती है, उसे दर्शन कहते हैं। __2) वस्तु में रहे सामान्य बोध को दर्शन कहते हैं | 3) अलग-अलग धर्म की मान्यता को भी दर्शन कहा जाता है, जैसेजैन दर्शन , बौद्ध दर्शन, वेदांत दर्शन आदि । 401. दर्शनावरणीय कर्म :- आठ प्रकार के कर्मों में दसरे नंबर के कर्म का नाम दर्शनावरणीय कर्म है । वस्तु में रहे सामान्य धर्म के बोध में अंतराय करनेवाला यह कर्म है। ___402. दश पूर्वी :- दश पूर्वो के ज्ञान को धारण करनेवाले महात्मा को दशपूर्वी कहते हैं। 403. दशवैकालिक :- 45 आगमों में चार मूलसूत्र कहलाते हैं। उनमें एक दशवैकालिक सूत्र है । विकाल समय में रचना होने से वैकालिक कहलाता है । और दश अध्ययन होने से इसे दशवैकालिक कहते हैं । 404. दश दिशाएँ :- उत्तर, दक्षिण पूर्व और पश्चिम ये चार दिशाएँ कहलाती हैं । ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य ये चार विदिशाएँ कहलाती हैं तथा ऊर्ध्व और अधो ये सब मिलकर दश दिशाएँ हैं । 405. दंड :- दंड शब्द के अनेक अर्थ हैं। 5390 For Private and Personal Use Only

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