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स्वाध्याय करना ।
2) विनय :- गुरुवंदन आदि विधिपूर्वक सूत्रों का स्वाध्याय करना । 3) बहुमान :- ज्ञानदाता गुरु के प्रति हृदय में आदर भाव रखना । 4) उपधान :- नवकार आदि सूत्रों के अधिकारी बनने के लिए शास्त्र में निर्दिष्ट विधि के अनुसार तप जप आदि करना ।
रखना ।
1 ) उचित काल :- निषिद्ध काल को छोड़ उचित समय में शास्त्र का
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5) अनिह्नव :- जिस गुरु के पास ज्ञान प्राप्त किया हो, उसके नाम आदि को नहीं छिपाना ।
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6) व्यंजन :- सूत्रों का शुद्ध उच्चारण करना ।
7) अर्थ :- जिस सूत्र का जो अर्थ होता हो, वो ही अर्थ करना । 8) तदुभय :- सूत्र का उच्चारण करते समय उसके अर्थ में उपयोग
364. ज्ञानातिशय :- तीर्थंकर परमात्मा के चार अतिशयों में से एक अतिशय ! इसके प्रभाव से प्रभु लोक अलोक के संपूर्ण स्वरूप को प्रत्यक्ष जानते देखते हैं ।
365. ज्ञानावरणीय :- ज्ञान पर आवरण लानेवाले कर्म को ज्ञानावरणीय कर्म कहते हैं । इस कर्म के उदय के कारण आत्मा में अज्ञानता, मतिमंदता, विस्मृति आदि भाव पैदा होते हैं ।
366. ज्ञेय :- जाननेयोग्य पदार्थों को ज्ञेय कहा जाता है ।
367. ज्ञान पंचमी :- सम्यग् ज्ञान की आराधना का वार्षिक पर्व, जो कार्तिक शुक्ला पंचमी के दिन मनाया जाता है । उस दिन सम्यग्ज्ञान की आराधना हेतु उपवास के साथ 51 लोगस्स का कायोत्सर्ग, 51 खमासमणे, 51 स्वस्तिक आदि किए जाते हैं । ज्ञानपंचमी की आराधना करने से अपने ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है ।
368. ज्ञानप्रवाह :- चौदह पूर्व में से 5 वें पूर्व का नाम ज्ञानप्रवाह है । 369. ज्ञानेन्द्रिय :- जिन इन्द्रियों से ज्ञान होता हैं, उन्हे ज्ञानेन्द्रिय कहते है । ये पांच हैं- कान, आँख, नाक, जीभ और त्वक् (चमडी) ।
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370. ज्ञेयतत्त्व :- ज्ञेय अर्थात् जानने योग्य । जीव आदि नौ तत्वों में जीव और अजीव ज्ञेय तत्व है ।
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