Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 45
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 338. छेद प्रायश्चित्त :- चारित्र में कोई बड़ा दोष लगा हो तो पूर्व के चारित्र पर्याय में से कुछ वर्ष के चारित्र पर्याय का छेद करना उसे छेद प्रायश्चित्त कहते हैं। 339. जघन्य :- कम से कम । 340. जंबूद्वीप :- मध्यलोक के मध्य में रहा द्वीप जंबूद्वीप है | जंबूद्वीप एक लाख योजन लंबा - चौड़ा है । यह द्वीप थाली के आकार है । अन्य सभी द्वीप और समुद्र चूड़ी के आकार के हैं और दुगुने - दुगुने व्यासवाले हैं । 341. जरावस्था :- वृद्धावस्था 342. जलचर :- पानी में रहनेवाले तिर्यंच प्राणियों को जलचर कहते 343. जातिभव्य :- जिन जीवों में मोक्ष में जाने की योग्यता तो है, परंतु अव्यवहार राशि की निगोद में से कभी भी बाहर नहीं निकलने के कारण जिनको मोक्षमार्ग के लिए अनुकूल सामग्री की प्राप्ति नहीं होती हैं, वे जीव जाति भव्य कहलाते हैं। 344. जातिस्मरण ज्ञान :- पूर्व भव के ज्ञान को जातिस्मरण ज्ञान कहते हैं, यह भी मतिज्ञान का ही एक प्रकार है । 345. जिज्ञासा :- ज्ञात-अज्ञात पदार्थों के बोध की इच्छा को जिज्ञासा कहते हैं। 346. जितेन्द्रिय :- जिसने अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त की हो, उसे जितेन्द्रिय कहते हैं। ___347. जीव :- जिसमें चेतना हो, उसे जीव कहते हैं । जीव में उपयोग ज्ञानोपयोग - दर्शनोपयोग होता है । 348. जीवाभिगम :- 12 उपांगों में तीसरे क्रम के उपांग का नाम जीवाभिगम है। 349. जीवास्तिकाय :- आत्म प्रदेशों के समूह को जीवास्तिकाय कहते हैं -न 335 For Private and Personal Use Only

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