Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 292. गर्भज :- गर्भकाल पूरा होनेपर गर्भ से जन्म लेनेवाले जीव गर्भज कहलाते हैं । इनके तीन भेद हैं 1. जरायुज : जरायु एक प्रकार का जाल जैसा पदार्थ होता है, जो रक्त आदि से भरा होता है । मनुष्य, गाय, भैंस, बकरी आदि जीवों का जन्म जरायुज होता है। 2. अंडज :- अंडे के रूप में पैदा होनेवाले जीव अंडज कहलाते हैंकुछ समय तक अंडे को सेने के बाद उसमें से बच्चा बाहर आता है | उदा. मुर्गा, कबूतर, चिड़िया आदि । 3. पोतज :- किसी भी प्रकार के आवरण में लिपटे बिना पैदा होते हैं, वे पोतज कहलाते हैं जैसे - हाथी, खरगोश, चूहा आदि । 293. गारव :- गारव अर्थात् आसक्ति । इसके तीन भेद हैं 1) रस गारव :- आहार में आसक्ति ! अनुकूल आहार की प्राप्ति का अभिमान | 2) ऋद्धि गारव :- प्राप्त संपत्ति में आसक्ति ! पुण्योदय से प्राप्त लब्धि आदि का अभिमान करना । 3) शाता गारव :- शारीरिक मानसिक सुख में आसक्ति ! शारीरिक सुख का अभिमान । 294. गुणव्रत :- श्रावक के 12 व्रतों में 5 अणुव्रतों के बाद तीन गुणव्रत आते हैं । 5 अणुव्रतों के लिए गुणकारक होने से गुणव्रत कहलाते हैं । गुणव्रत तीन हैं 1) दिक् परिमाण व्रत - चारों दिशाओं में जाने - आने का परिमाण निश्चित करना । 2) भोगोपभोग विरमण व्रत :- जिस वस्तु का एक ही बार भोग हो सकता है उसे भोग कहते हैं जैसे - भोजन आदि । जिस वस्तु को बार बार भोगा जा सकता हो, उसे उपभोग कहते हैं । जैसे - स्त्री, आभूषण, वस्त्र, मकान, गाड़ी आदि । भोग और उपभोग के पदार्थों का परिमाण निश्चित करना उसे भोगोपभोग विरमणव्रत कहते हैं | इस व्रत में अभक्ष्य भक्षण का त्याग किया जाता है। ==न 275 For Private and Personal Use Only

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