Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 308. चतुर्ज्ञानी :- पाँच ज्ञान में से मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनः पर्यवज्ञान के धारक महात्मा को चतुर्ज्ञानी कहते हैं । 309. चतुरिन्द्रिय :- पाँच इन्द्रियों में से कर्णेन्द्रिय को छोड़कर चार इन्द्रियों को धारण करनेवाले जीव चतुरिन्द्रिय कहलाते हैं । जैसे - मच्छर, मक्खी, बिच्छू आदि । 310. चोविहार :- अशन, पान, खादिम और स्वादिम इन चारों प्रकार के आहार के त्याग को चोविहार कहते हैं । 311. चतुष्पद :- चार पाँववाले तिर्यंच प्राणियों को चतुष्पद कहते हैं। जैसे- गाय, भैंस, बैल, ऊँट, हाथी, कुत्ता, बिल्ली आदि । 312. चक्रवर्ती :- जो छह खंड के अधिपति होते हैं । जो चक्ररत्न आदि 14 रत्न, 9 निधि आदि के स्वामी होते है । चक्रवर्ती के 64000 स्त्रियाँ होती हैं | 32000 मुकुटबद्ध राजाओं का अधिपति होता है । विशाल साम्राज्य और पुण्य का स्वामी होता है | चक्रवर्ती अपने वैभव को छोड़कर दीक्षा ले तो मोक्ष में जाता है अथवा स्वर्ग में जाता है | एक अवसर्पिणी और एक उत्सर्पिणी काल में 12-12 चक्रवर्ती होते हैं । इस अवसर्पिणी काल के 8 चक्रवर्ती मोक्ष में, दो स्वर्ग में तथा दो सातवीं नरक में गए थे । शांतिनाथ, कुंथुनाथ और अरनाथ तीर्थंकर के साथ चक्रवर्ती भी बने थे। 313. चउविसत्थो :- जिसमें 24 भगवान की स्तवना होती है उसे चउविसत्थो कहते हैं। ____314. चक्ररत्न :- चक्रवर्ती के 14 रत्नों में से एक रत्न जिसके बल पर चक्रवर्ती छह खंड का विजेता बनता है। ___315. चातुर्मास :- आषाढ़ सुदी 14 से कार्तिक सुदी 14 की चार मास की अवधि को चातुर्मास कहते हैं । यद्यपि 12 मास में कुल तीन चातुर्मास होते हैं फिर भी वर्षा ऋतु के चार मास के लिए यह शब्द अधिक रूढ़ है। G300= For Private and Personal Use Only

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