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जाने की जरूरत नहीं रहती है । किसी पदार्थ को देखने के लिए आंख को उस पदार्थ का स्पर्श करना नहीं पड़ता है । दूर रहकर भी आँख उस पदार्थ को देख सकती है ।
___75. अबाधाकाल :- किसी भी कर्म का बंध होने के साथ ही वह कर्म उदय में नहीं आता है । कुछ समय बीतने के बाद ही वह कर्म उदय में आता है, उस काल को अबाधा काल कहते हैं । जैसे कोई कर्म एक कोड़ा कोड़ी सागरोपम की स्थितिवाला बँधा हो तो वह कर्म 1000 वर्ष बीतने के बाद ही उदय में आएगा। ____76. अब्रह्म :- पुरुष स्त्री की मैथुन क्रिया को अब्रह्म कहते हैं।
77. अभव्य :- जिस आत्मा में मोक्ष में जाने की योग्यता ही न हो, उसे अभव्य आत्मा कहते हैं ।
78. अभिग्रह :- मन की धारणा अनुसार एक संकल्प । यह अभिग्रह चार प्रकार का होता है - द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । जैसे - भगवान महावीर ने अभिग्रह लिया था
1) द्रव्य से सिर्फ उड़द के बाकुले ही बहोरूंगा | 2) क्षेत्र से दाता उंबरे पर बैठा हो । 3) काल से भिक्षाकाल बीत गया है।
4) भाव से तीन दिन की उपवासी, मस्तक मुंडी हुई राजकुमारी हो, उसके हाथ - पाँव में बेड़ी हो, आँखों में आँसू हो । घर के द्वार पर बैठी हो ।
प्रभु का यह अभिग्रह 175 दिन के बाद पूर्ण हुआ था ।
79. अभिनिवेश :- तत्त्व-अतत्त्व को जानने पर भी स्वकल्पित किसी वस्तु के झूठे आग्रह को अभिनिवेश कहते हैं । 5 प्रकार के मिथ्यात्व में एक आभिनिवेशिक मिथ्यात्व भी है ।
80. अभिषेक :- प्रभु के मस्तक पर दूध - जल के प्रक्षालन को अभिषेक कहते हैं।
___81. अभ्यंतर तप :- जो तप बाहर से दिखाई नहीं देता हो उसे अभ्यंतर तप कहते हैं । इसके छह भेद हैं - 1. प्रायश्चित्त 2. विनय 3. वेयावच्च 4. स्वाध्याय 5. कायोत्सर्ग 6. ध्यान ।
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