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82. अभ्याख्यान :- किसी पर झूठा आरोप लगाना । अठारह पाप स्थानकों में तेरहवें नंबर का पाप है । इस पाप की सजा जीवात्मा को अवश्य भुगतनी पड़ती है।
जैसे - सीता ने पूर्व भव में निर्दोष साधु महात्मा पर व्यभिचार का झठा कलंक लगाया था, इस पाप के कारण निर्दोष होने पर भी सीता पर झूठा कलंक लगा था।
83. अभ्युदय :- आबादी, समृद्धि ।
84. अमम :- श्रीकृष्ण की आत्मा । आगामी चौबीसी में अमम नाम का तीर्थंकर बनेगी।
85. अमर :- देवता का पर्यायवाची नाम । जो कभी मृत्यु नहीं पाता हो, उसे भी अमर कहते हैं।
86. अमारि प्रवर्तन :- चारों ओर हो रही हिंसा को बंद कराना ! अहिंसा की उद्घोषणा ।
87. अमूढ़दृष्टि :- दर्शनाचार के एक आचार का नाम । तत्त्वत्रयी में निश्चल श्रद्धा को अमूढदृष्टि कहते हैं ।
88. अमूर्त :- जिसका कोई आकार न हो, उसे अमूर्त कहते हैं । सिद्ध भगवंत अमूर्त अर्थात् निराकार होते हैं ।
89. अमृत अनुष्ठान :- पाँच प्रकार के अनुष्ठानों में सर्वश्रेष्ठ अनुष्ठान ! इसके 7 लक्षण हैं -
1. मन की एकाग्रता 2. जिनाज्ञा का संपूर्ण पालन 3. भावों की अभिवृद्धि 4. मोक्ष की तीव्र अभिलाषा 5. रोमांचित देह 6. प्रमोद भाव 7. संसार का भय
90. अमोघ देशना :- जो देशना कभी निष्फल नहीं जाती हो, उसे अमोघ देशना कहते हैं ।
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