Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तीन गुप्ति :- 1. मनगुप्ति 2. वचनगुप्ति 3. कायगुप्ति । 112. अशन :- • भोजन का एक प्रकार ! भोजन के चार प्रकार हैं अशन, पान, खादिम और स्वादिम । जिसे खाने से शीघ्र भूख शांत हो, उसे अशन कहते हैं । जैसे- अनाज, मिठाई आदि । 113. अष्टमहासिद्धि :- रत्नत्रयी की आराधना के फलस्वरूप आत्मा में पैदा होनेवाली विशेष लब्धियाँ, सिद्धियाँ, ये आठ हैं । 1. अणिमा :- 2 महिमा 3 गरिमा 4 लघिमा 5 प्राप्ति 6 प्राकाम्य 7 ईशित्व 8 वशित्व | 114. अष्टापद :- एक पर्वत का नाम ! ऋषभदेव परमात्मा की निर्वाण भूमि ! इस पर्वत की आठ सीढ़ियाँ होने के कारण इसे अष्टापद कहते हैं । भरत महाराजा ने यहाँ पर विशाल सिंहनिषद्यानाम के जिनालय का निर्माण कराया था । वर्तमान में यह तीर्थ अदृश्य है । 115. असंज्ञी :- जिन जीवों के मन न हो, वे असंज्ञी कहलाते हैं । 116. अव्यवहार राशि :- जो जीव अभी तक एक बार भी सूक्ष्म निगोद में से बाहर नहीं निकले हों, वे अव्यवहार राशि के जीव कहलाते हैं । 117. अस्तिकाय :- अस्ति अर्थात् प्रदेश, काय अर्थात् समूह ! प्रदेशों के समूह को अस्तिकाय कहते हैं । इसके पाँच भेद हैं- 1 धर्मास्तिकाय 2 अधर्मास्तिकाय 3 आकाशास्तिकाय 4 पुद्गलास्तिकाय और 5 जीवास्तिकाय । 118. अहोरात्र :- रात और दिन | 119. अहंकार :- 'मैं कुछ हूँ' ऐसा अहं भाव ! I am something I 120. अंतकृत केवली :- अपने आयुष्य के अंतिम अन्तर्मुहूर्त में केवलज्ञान प्राप्तकर थोड़े ही समय में मोक्ष में जानेवाले अंतकृत केवली कहलाते हैं । 121. अंतःकरण :- मन । 122. अन्तद्वीप :- समुद्र के भीतर आए द्वीप को अन्तद्वीप कहते हैं जंबुद्वीप में हिमवंत पर्वत और शिखरी पर्वत के दोनों किनारों पर दो - दो दाढ़ाओं पर 7 - 7 द्वीप आए हुए हैं। 8 दाढ़ाओं पर 7-7 द्वीप आने से कुल 56 अन्तद्वीप कहलाते हैं ! 123. अन्तर्मुहूर्त :- दो समय से लेकर 48 मिनिट में एक समय कम हो, उस काल को अन्तर्मुहूर्त कहते हैं । For Private and Personal Use Only 11

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