Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 5 www.kobatirth.org 'क' 238. कथानुयोग :- आगम शास्त्र चार अनुयोगों में विभक्त है । 1 द्रव्यानुयोग 2 गणितानुयोग 3 कथानुयोग 4 चरण करणानुयोग । कथानुयोग में महापुरूषों के जीवन चरित्र आते हैं । 239. कर्म :- मिथ्यात्व आदि हेतुओं के द्वारा आत्मा कार्मण वर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण कर उन्हें आत्मसात् करती है। आत्मा पर लगने पर वे ही कार्मणवर्गणाएँ कर्म कहलाती हैं । कर्म के मुख्य 8 भेद हैं- 1. ज्ञानावरणीय 2. दर्शनावरणीय 3. वेदनीय 4. मोहनीय 5. आयुष्य 6. नाम 7. गोत्र 8. अंतराय । 240. कल्याणक :- तीर्थंकर नाम कर्म के प्रभाव से तीर्थंकर परमात्मा के जीवन में होनेवाली पांच विशिष्ट घटनाएँ जो कल्याणक कहलाती है । 1) च्यवन कल्याणक :- देवलोक में से आयुष्य का पूर्ण होना और माँ की कुक्षि में अवतरण होना । दीक्षा अंगीकार करना । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2) जन्म कल्याणक :- माँ की कुक्षि से परमात्मा का जन्म होना । • सर्वसंग का त्याग कर परमात्मा द्वारा भागवती 3) दीक्षा कल्याणक : 4) केवलज्ञान कल्याणक :- घातिकर्मों के क्षय के साथ प्रभु को केवलज्ञान की प्राप्ति होना । 5 ) निर्वाण कल्याणक :- घाति अघाति सर्व कर्मों का क्षय होने से परमात्मा के मोक्ष प्रयाण को निर्वाण कल्याणक कहते हैं । - 241. कल्प :- साधु के आचार को कल्प कहते हैं और कल्प को बतानेवाले सूत्र को 'कल्पसूत्र' कहते हैं । 242. कल्पवृक्ष :- जिसके पास याचना करने से मन की सारी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं, वे कल्पवृक्ष कहलाते हैं । 30 अकर्मभूमि और 56 अन्तद्वीप रूपी युगलिक काल में 10 प्रकार के कल्पवृक्ष होते हैं, जो मानवों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करते हैं । 243. कल्पधर :- पर्युषण के दिनों में जिस दिन से कल्पसूत्र का वाचन प्रारंभ होता है उसके एक दिन पहले के दिन को कल्पधर कहते हैं । 22 For Private and Personal Use Only

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