Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 43. अनंतज्ञान :- केवलज्ञान ! जिस ज्ञान का कहीं अंत न हो, उसे अनंतज्ञान कहते हैं। 44. अनंत चतुष्टय :- चार घाती कर्मों के नाश से आत्मा में पैदा होनेवाली चार शक्तियाँ - ''1 अनंतज्ञान 2 अनंतदर्शन 3 वीतरागता 4 अनंतवीर्य ।' 45. अनंतर :- अंतर बिना ! किसी भी क्रिया से प्राप्त होनेवाले तात्कालिक फल को अनंतरफल कहते हैं । जैसे - भोजन का अनंतर फल क्षुधा की तृप्ति । 46. अनादि :- जिस वस्तु का कोई प्रारंभकाल न हो उसे अनादि कहते है। ___47. अनंत :- जिसका कहीं अंत नहीं आता हो, उसे अनंत कहते हैं। 48. अनादेयनाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से व्यक्ति का वचन कहीं भी ग्राह्य नहीं बनता हो ! 49. अनाचार :- ली हुई प्रतिज्ञा का सर्वथा भंग हो, उसे अनाचार कहते है। 50. अनाभोग :- मन की शून्यता से होनेवाली प्रवृत्ति । एकेन्द्रिय आदि असंज्ञी जीवों को होनेवाले मिथ्यात्व को अनाभोगिक मिथ्यात्व कहते हैं । ____51. अनित्य भावना :- 12 भावनाओं में सबसे पहली भावना अनित्य भावना है । "जगत् के सभी जीव और पदार्थ विनाशी हैं, आयुष्य क्षणभंगुर है। इस प्रकार के चिंतन को अनित्य भावना कहते हैं । 52. अनुग्रह :- गुरु की कृपा | परमात्मा की कृपा | 53. अनुप्रेक्षा :- किसी भावना का पुन:पुन: चिंतन । 54. अनुबंध :- परंपरा । 55. अनुमान :- लिंग या चिह्न के आधार पर किसी वस्तु के अस्तित्व आदि का निश्चय करना, उसे अनुमान कहते हैं । ___56. अनुमोदना :- किसी के सुकृत की बात सुनकर मन में खुश होना, उसे अनुमोदना कहते हैं । 57. अनुयोग :- सूत्र के अर्थ के साथ उसके अनुसंधान को अनुयोग For Private and Personal Use Only

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