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43. अनंतज्ञान :- केवलज्ञान ! जिस ज्ञान का कहीं अंत न हो, उसे अनंतज्ञान कहते हैं।
44. अनंत चतुष्टय :- चार घाती कर्मों के नाश से आत्मा में पैदा होनेवाली चार शक्तियाँ - ''1 अनंतज्ञान 2 अनंतदर्शन 3 वीतरागता 4 अनंतवीर्य ।'
45. अनंतर :- अंतर बिना ! किसी भी क्रिया से प्राप्त होनेवाले तात्कालिक फल को अनंतरफल कहते हैं । जैसे - भोजन का अनंतर फल क्षुधा की तृप्ति ।
46. अनादि :- जिस वस्तु का कोई प्रारंभकाल न हो उसे अनादि कहते है। ___47. अनंत :- जिसका कहीं अंत नहीं आता हो, उसे अनंत कहते हैं।
48. अनादेयनाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से व्यक्ति का वचन कहीं भी ग्राह्य नहीं बनता हो !
49. अनाचार :- ली हुई प्रतिज्ञा का सर्वथा भंग हो, उसे अनाचार कहते है।
50. अनाभोग :- मन की शून्यता से होनेवाली प्रवृत्ति । एकेन्द्रिय आदि असंज्ञी जीवों को होनेवाले मिथ्यात्व को अनाभोगिक मिथ्यात्व कहते हैं ।
____51. अनित्य भावना :- 12 भावनाओं में सबसे पहली भावना अनित्य भावना है । "जगत् के सभी जीव और पदार्थ विनाशी हैं, आयुष्य क्षणभंगुर है। इस प्रकार के चिंतन को अनित्य भावना कहते हैं ।
52. अनुग्रह :- गुरु की कृपा | परमात्मा की कृपा | 53. अनुप्रेक्षा :- किसी भावना का पुन:पुन: चिंतन । 54. अनुबंध :- परंपरा ।
55. अनुमान :- लिंग या चिह्न के आधार पर किसी वस्तु के अस्तित्व आदि का निश्चय करना, उसे अनुमान कहते हैं । ___56. अनुमोदना :- किसी के सुकृत की बात सुनकर मन में खुश होना, उसे अनुमोदना कहते हैं ।
57. अनुयोग :- सूत्र के अर्थ के साथ उसके अनुसंधान को अनुयोग
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