Book Title: Jain Shabda Kosh
Author(s): Ratnasensuri
Publisher: Divya Sanesh Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 28. अतिशय :- ऐसी विशेषता जो अन्य किसी में न हो ! जैसे तीर्थंकरों को जन्म से चार, घातिकर्मों के क्षय से ग्यारह तथा देवकृत उन्नीस अतिशय होते हैं । 29. अतीन्द्रिय ज्ञान :- इन्दियों की मदद बिना जो ज्ञान होता हो, वह अतीन्द्रिय ज्ञान कहलाता है । अवधिज्ञान आदि अतीन्द्रिय ज्ञान कहलाते हैं । ___30. अदत्तादान :- मालिक की अनुमति बिना वस्तु को उठा लेना , उसे अदत्तादान कहते हैं । इसे चोरी भी कहते हैं । 31. अधर्मास्तिकाय :- संपूर्ण 14 राजलोक में व्याप्त एक ऐसा द्रव्य जो जीव और पदार्थ को स्थिर रहने में मदद करता है । 32. अधिकरण :- हिंसा के साधन जैसे - चाकू, छुरी, आदि । 33. अधिगम सम्यक्त्व :- I के उपदेश आदि द्वारा प्राप्त सम्यक्त्व । 34. अधोलोक :- मध्यलोक से नीचे सात राजलोक प्रमाण अधोलोक है । सात नरकें आदि अधोलोक में हैं । 35. अध्यवसाय :- मन का परिणाम (विचार)। 36. अध्यात्म :- आत्मा को उद्देशित करके की जानेवाली क्रियाएँ । 37. अध्यात्म शास्त्र :- आत्मा की शुद्धि के उपाय बतानेवाले ग्रन्थ । 38. अनर्थदंड :- प्रयोजन बिना, निष्कारण की गई हिंसा आदि पाप की प्रवृत्ति को अनर्थदंड कहते हैं अथवा मौज-मजा के लिए जो हिंसा की जाती है, वह भी अनर्थदंड का पाप कहलाता है । जैसे - नाटक, सिनेमा आदि देखना। 39. अभिलाप्य :- जिन्हें वाणी से व्यक्त किया जा सके ऐसे भावों को अभिलाप्य भाव कहते हैं । 40. अनभिलाप्य :- वाणी के द्वारा जिन भावों को व्यक्त नहीं किया जा सके, उन्हें अनभिलाप्य कहते हैं | ___41. अनपवर्तनीय :- जो आयुष्य किसी उपघात से बीच में टूटे नहीं, उसे अनपवर्तनीय कहते हैं । 42. अनंतकाय :- कंदमूल ! जिस एक काया में अनंत जीवों का वास हो , उसे अनंतकाय कहते हैं । For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102