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से होनेवाले दर्शन को अचक्षुदर्शन कहते हैं ।
14. अचल :- जो कभी चलित न हो, वह अचल कहलाता है । जैसेइंद्र का सिंहासन अचल होता है। मोक्ष में रही आत्मा का पद अचल होता है ।
15. अर्चना :- पूजा ।
16. अचित्त :- जीव रहित वस्तु को अचित्त कहा जाता है ।
17. अचिंत्य शक्ति :- जिसकी कल्पना भी न की जा सके ऐसी शक्ति को अचिंत्य शक्ति कहते हैं ।
:- 12 वें वैमानिक देवलोक का नाम । जो अपने स्वरूप
18. अच्युत
से च्युत न होता हो, उसे भी अच्युत कहते हैं ।
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19. अनशन :- आहार के इच्छापूर्वक त्याग को अनशन कहते हैं । 20. अचेलक :- वस्त्र का संपूर्ण त्याग ! तीर्थंकरों के शरीर पर जब तक देवदृष्य होता है, तब तक वे सचेलक कहलाते हैं और जब वरत्र चला जाता है, तब वे अचेलक कहलाते हैं ।
21. अणिमा :- एक प्रकार की लब्धि, जिसके प्रभाव से अपनी काया अणु जितनी भी छोटी बनाई जा सकती है ।
व्रत ।
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22. अणु :- पुद्गल का अविभाज्य अंश, जिसके केवली भी दो विभाग नहीं कर सकते !
23. अणुव्रत :- महाव्रत की अपेक्षा श्रावक के पालन करने योग्य छोटे
24. अतिचार :- व्रत में लगनेवाले छोटे छोटे दोष अतिचार कहलाते हैं । 25. अतिजात पुत्र :- पिता की अपेक्षा जो बढ़कर हो, वह पुत्र अतिजात कहलाता है ।
26. अतिथि :- साधु-साध्वी ! जो तिथि देखकर नहीं बल्कि हमेशा आराधना करते हों ।
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27. अतिथि संविभाग व्रत : श्रावक को पालन करने योग्य 12 वाँ व्रत । जिसमें पहले दिन श्रावक-श्राविका उपवास पूर्वक पौषध करके दूसरे दिन एकासना करते हैं और साधु साध्वीजी को वहोराई गई वस्तु को ही एकासने में वापरते हैं ।
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