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तीर्थंकर पार्श्वनाथ
तेईसवें तीर्यकर भगवान् पार्श्वनाथ ऐतिहासिक पुरुप है । उनका तीर्थ प्रवर्तन भगवान् महावीर से २५० वर्ष पहले हुआ । भगवान् महावीर के समय तक उनकी परम्परा अविच्छिन्न थी। भगवान् महावीर के माता-पिता भगवान् पार्श्वनाथ के अनुयायी थे । भगवान् महावीर ने समय की मांग को पहचान पच महावत का उपदेश दिया। भगवान् पार्श्वनाथ के शिष्य भगवान् महावीर व उनके शिष्यो से मिले, चर्चाएं की ओर अन्ततः पचयाम 'स्वीकार कर भगवान् महावीर के तीर्थ मे सम्मिलित हो गए।
धर्मानन्द कौसम्बी ने भगवान् पार्श्व के बारे मे कुछ मान्यताए प्रस्तुत की है :
"ज्यादातर पाश्चात्य पण्डितो का मत है कि जैनो के २३ वें तीर्थकर पार्व ऐतिहासिक व्यक्ति थे। उनके चरित्र में भी काल्पनिक बातें है । पर वे पहले तीर्थंकरो के चरित्र मे जो बातें है, उनसे बहुत कम है। पार्य का शरीर ६ हाथ लम्बा था। उनकी आयु १०० वर्ष की थी। सोलह हजार साधु-शिष्य, अडतीस हजार साध्वी-शिष्याएं, एक लाख चौसठ हजार श्रावक तथा तीन लाख उनतालीस हजार श्राविकाए इनके पास थी। इन सव बातो मे जो मुख्य ऐतिहासिक बात है, वह यह है कि चौवीसर्वे तीर्थकर वर्षमान के जन्म के एक सौ अठहत्तर साल पहले पार्श्व तीर्थकर का परिनिर्वाण हुआ।
वर्धमान या महावीर तीर्थकर वुद्ध के समकालीन थे, इस बात को सव लोग जानते है । बुद्ध का जन्म वर्षमान के जन्म के कम से कम १५ साल बाद हुआ होगा । इसका अर्थ यह हुआ कि बुद्ध का जन्म तथा पार्श्व तीर्थकर का परिनिर्वाण इन दोनो में १६३ साल का अन्तर था । मरने के पूर्व लगभग ५० साल तो पार्श्व तीर्थकर उपदेश देते रहे होगे। इस प्रकार वुद्ध-जन्म के करीब दो सौ तैतालीस वर्ष पूर्व पार्श्व मुनि ने उपदेश देने का काम शुरू किया। निन्य श्रमणो का सघ भी पहले-पहल उन्हीने स्थापित किया होगा।