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जैन परम्परा का इतिहास
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८०-न० वा० ढाल ६ गाथा 8-१३, ३७, ३८ ८१-आचारांग : प्रथम श्रुतस्कंध, भगवती, ज्ञाता, विपाक, प्रज्ञापना, निशीथ,
उत्तराध्ययन ( २२ अध्ययन ) अनुयोग द्वार । ५२-इन्होंने नव-अंग-स्थानाङ्ग, समवायाङ्ग, भगवती, ज्ञाता, उपासक दशा,
अन्तकृत् दशा, अनुत्तरौपपातिक दशा, प्रश्न व्याकरण और विपाक
पर टीकाएं लिखी। ८३-इन्होंने आचारांग और सूत्रकृताङ्ग पर टीकाएं लिखी। ये वि० १० वी
शताब्दी में हुए। ८४-इन्होने उत्तराध्ययन पर टीका लिखी। इनका समय वि० १० वी
शती है। ८५-इन्होने दावकालिक पर टीका लिखी। इनका समय वि० १० वी
शती है। ८६-ये अनुयोग द्वार के टीकाकार है । इनका समय वि० १२ वां शतक है। ८७-इन्होने राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, नन्दी, सूर्यप्रज्ञप्ति चन्द्रप्रशति
आदि पर टीकाए लिखी। इनका समय वि० १२ वी शताब्दी है । ५५-नियुक्तियां भद्रबाहु द्वितीय की रचना है। इनका समय वि० ५ वी या
छठी शताब्दी है। ८६-संघदास गणी और जिनभद्र के भाष्य सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। इनका
समय वि०७ वी शताब्दी है। ६०-चूर्णिकारो में जिनदास महत्तर प्रसिद्ध है। इनका समय वि० ७ वी ८
वी शताब्दी है। ६१-इनका समय वि० १८ वी शताब्दी है। ६२-वालाववोध । ९३-कालु० यशो० २।५।४-८ ६४-कालु० यशो० १।५।१,६,८, १० ९५-कालु० यशो० ११५।१३-१४ ९६-आचार्य श्री तुलसी ( जीवन पर एकदृष्टि ) पृ० ८६,६०,६१,९२,९३,६४